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एनसीपी के कद्दावर नेता छगन भुजबल ने कहा- अबकी बार 400 पार मुश्किल है, मुझे अपने लिए टिकट मांगना पसंद नहीं

मुंबई
अजीत पवार गुट के कद्दावर नेता छगन भुजबल का कहना है कि 2014 और 2019 की तरह भाजपा की राह इस बार उतनी आसान नहीं है। उन्होंने दावा किया कि जिस तरह उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टी टूटी है, दोनों नेताओं के साथ लोगों की सहानुभूति है, जिसका फायदा उन्हें इस बार लोकसभा चुनाव में मिल सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि इस बार एनडीए के लिए राह काफी मुश्किल है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की क्षमता पर लोगों को यकीन है और लोग चाहते हैं कि वे देश में फिर से मजबूत सरकार बनाएं। भुजबल ने नासिक सीट से अपनी दावेदारी वापस लेने पर कहा कि वह कभी अपने लिए किसी से सीट नहीं मांगते हैं। इसलिए जब उनका नाम तीन हफ्ते तक अनाउंस नहीं हुआ तो उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया।

एनसीपी के कद्दावर नेता छगन भुजबल, शरद पवार से अलग होने के दौरान अजीत पवार के साथ फ्रंटफुट पर थे। उन्होंने शनिवार को एनडीटीवी के साथ इंटरव्यू में कहा कि महाराष्ट्र में इस बार भाजपा गठबंधन के लिए उतनी आसान राह नहीं है, जो 2014 और 1019 के वक्त थी। वह इसलिए क्योंकि पिछले दो सालों में महाराष्ट्र की राजनीति में दिलचस्प घटनाक्रम हुए हैं। पहले 2022 में एकनाथ शिंदे ने उद्धव गुट से अलग होकर अपने पाले के नेताओं के साथ उद्धव की सरकार गिराई। फिर भाजपा गठबंधन के साथ महाराष्ट्र में सरकार बना ली। अगले साल ठीक ऐसा ही हुआ। शरद पवार की एनसीपी से अलग होकर अजीत पवार ने भी ऐसा ही किया, वो इस वक्त महाराष्ट्र में डिप्टी सीएम हैं और महायुति गठबंधन के साथ सरकार में हैं।

उद्धव और शरद पवार के साथ लोगों की सहानुभूति
छगन भुदबल ने कहा, "मेरा मानना ​​​​है कि यह एक सिम्पैथी लहर हो सकती है। जिस तरह से उद्धव ठाकरे की शिवसेना विभाजित हो गई और एनसीपी के एक गुट ने पाला बदल लिया। ऐसा चुनावी रैलियों में भी दिख रहा है। पिछले दोनों लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में, भाजपा ने अविभाजित शिवसेना के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था और पार्टियों ने क्रमशः 23 और 18 सीटों में जीत हासिल की थी।

नासिक सीट से दावेदारी क्यों छोड़ी?
भुजबल ने कहा कि उन्होंने नासिक से टिकट नहीं मांगा था लेकिन होली के दौरान एनसीपी के अन्य नेताओं ने उन्हें बताया था कि वह नासिक से चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने कहा, यह बात उन्हें दिल्ली में सहयोगियों के बीच देर रात हुई बैठक के बाद बताई गई, जहां प्रत्येक पार्टी के लिए एक-एक करके सीटों पर चर्चा की जा रही थी। बता दें कि महाराष्ट्र की नासिक लोकसभा सीट पर प्रत्याशी को लेकर सबसे ज्यादा बवाल देखा गया। क्योंकि भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की एनसीपी में सीट-बंटवारे को लेकर चल रही चर्चा के बीच भुजबल ने खुद ही ऐलान कर दिया था कि वे नासिक सीट से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। हालांकि इस सीट पर उम्मीदवार की घोषणा अभी होनी बाकी है और महायुति के बीच खींचतान चल रही है।

मुझे अपने लिए टिकट मांगना पसंद नहीं
भुजबल ने कहा कि शिंदे भी शिवसेना के लिए सीट चाहते थे और वह चुनाव लड़ने के लिए सहमत हुए क्योंकि नासिक उनका आधार है और वह और उनका बेटा वहां से विधायक रहे हैं। उनके भतीजे समीर भुजबल भी इस सीट से सांसद थे। भुजबल ने कहा कि क्षेत्र में विभिन्न विकास कार्यों के कारण उन्हें लोगों से बहुत समर्थन मिला है इसलिए वे आश्चर्यचकित थे कि तीन सप्ताह तक सीट से उनका नाम घोषित नहीं किया गया था। उन्होंने कहा, "जब नारायण राणे का नाम रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग के लिए घोषित किया गया और और मेरा नहीं, तो मुझे लगा कि वे ऐसा नहीं करना चाहते हैं। तब मैंने कहा कि मैं सीट से नहीं लड़ना चाहता। अगर मुझे लड़ना है तो मैं सम्मान के साथ चुनाव लड़ना चाहता हूं। मैं अपनी हैसियत जानता हूं। मुझे टिकट मांगना पसंद नहीं है। मुझे आज भी याद है कि मैंने एकमात्र बार 1970 में मुंबई नगर निगम के लिए टिकट मांगा था।"

बारामाती पर परिवार की लड़ाई देख दुखी हूं
छगन भुजबल उस समय थोड़े भावुक हो गए जब उनसे बारामती में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा के बीच मुकाबले के बारे में पूछा गया। यह सीट शरद पवार का गढ़ माना जाती है। भुजबल ने कहा, " मेरे लिए भी यह दुखद है कि जो लोग इतने सालों तक एक ही घर में एक साथ रहते हैं और अलग हैं। जो हो रहा है वह कुछ ऐसा है जो कई लोगों को पसंद नहीं आ रहा है। गलती किसकी है, यह अलग बात है। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता तो बहुत अच्छा होता।''