मोदी सरकार टैक्सपेयर्स को बड़ी राहत दे सकती है , इस स्कीम में बदलाव की संभावना
नई दिल्ली
टैक्सपेयर्स के लिए अधिक अनुकूल बनाने के लिए मोदी सरकार 'फेसलेस' इनकम टैक्स असेसमेंट मैकेनिज्म की समीक्षा कर रही है। एक हाइब्रिड फॉर्मूले की जांच की जा रही है, जिससे टैक्सपेयर फेसलेस स्कीम या इन-पर्सन समाधान में से किसी एक को चुन सकें।
ईटी से एक अधिकारी ने कहा, "इसके इफेक्टनेस का आकलन करने के लिए इसकी समीक्षा की जा रही है," उन्होंने कहा कि एक सोच यह भी है कि इसे टैक्सपेयर के लिए वैकल्पिक बनाया जाना चाहिए। एक अन्य अधिकारी ने कहा कि इसका उद्देश्य टैक्सपेयर्स के लिए अनुपालन को और आसान बनाने के लिए इसके कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों का समाधान करना है। जल्द ही इस पर अंतिम फैसला लिया जाएगा।
यह योजना 1 अप्रैल, 2021 को शुरू की गई थी। इसके तहत इनकम टैक्स डिपॉर्टमेंट रिटर्न प्रोसेस करता है, रिफंड जारी करता है, टैक्स असेसमेंट, स्क्रूटनी करता है और अपील को मैनेज करता है। असेसिंग ऑफिसर को भौगोलिक क्षेत्राधिकार का पालन किए बिना केस रैंडमली सौंपे जाते हैं।
हालांकि, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से एसेसमेंट सिस्टम स्थापित हो गया है, लेकिन व्यक्तिगत और व्यावसायिक दोनों करदाताओं की ओर से कुछ व्यक्तिगत इंटरफेस की अनुमति देने की मांग बढ़ रही है। विशेषज्ञों ने कहा कि एसेसमेंट एक कांप्लेक्स एक्सरसाइज है। यह करदाता और टैक्स अफसर के बीच संवाद अधिक प्रभावी हो सकता है अगर वे संवादात्मक हों।
ऐसे लटक जाते हैं मामले
एक एक्सपर्ट ने बताया, "बड़े और जटिल मामलों के मामले में, जिनमें विस्तृत स्पष्टीकरण और बड़ी मात्रा में डेटा पेश करने की आवश्यकता होती है, कभी-कभी करदाताओं को अपने तथ्य और तर्क तैयार करने और अपलोड करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया जाता है, जिसके फलस्वरूप गलत एडजस्टमेंट होते हैं। एक बार जब कोई मामला प्रथम-स्तरीय अपील में चला जाता है, तो यह लटक जाता है। इससे इनकमटैक्स कमिश्नर (अपील) लेवल पर मामलों का एक बैकलॉग बन जाता है, जहां सिस्टम को अपनी सबसे महत्वपूर्ण चुनौती का सामना करना पड़ता है।"
बिजनेस के कामकाज को एसेसमेंट अफसरों को समझाने में दिक्कत
विशेषज्ञता के मामले करदाताओं ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर किसी बिजनेस के कामकाज को एसेसमेंट अफसरों को समझाने में कठिनाइयों की भी शिकायत की है। इस कारण उनके खिलाफ आदेश पारित किए जा रहे हैं। एक अन्य एक्सपर्ट ने बताया कि स्टार्टअप या फंडहाउस इस मुद्दे का सबसे अधिक सामना करते हैं। ऐसी चुनौतियों में स्टे मांगने के लिए स्पेसिफिक ऑप्शन की कमी, बड़ी फाइलों को ऑनलाइन अपलोड करने में कठिनाई और करदाताओं को नोटिस का जवाब देने के लिए पर्याप्त समय न देना शामिल है।