प्रत्येक व्यक्ति के अंदर राममंदिर जागृत होना जरूरी : दीदी मां मंदाकिनी
रायपुर
संपूर्ण सनातन धर्म के लिए यह वर्ष अद्वितीय वर्ष है इसलिए कि उनकी आस्था और अस्मिता को सैकड़ों वर्ष की संघर्ष के बाद सुदृढ़ करने के लिए जन्मस्थल में रामलला विराजे हैं। राम और रामकिंकर दोनों एक ही है इसलिए भी सुखद संयोग कह सकते हैं कि गुरुदेव रामकिंकर जी महाराज का शताब्दी मनाने के लिए राम जी स्वंय अयोध्या में प्रवेश कर गए। राम मंदिर का निर्माण हो जाना ही पर्याप्त नहीं हैं, जब श्रीराम के गुणों को आत्मसात करते हुए प्रत्येक व्यक्ति के अंदर राम मंदिर जागृत होगी तभी इसकी सार्थकता है। रामचरित मानस में केवल राम का ही चरित्र नहीं बल्कि हमारे आपके जीवन की कथा है। जीवन दर्पण है रामचरित मानस, कलियुग में यदि सबसे सरल साधना कोई है तो वह है राम नाम।
दीदी मां मंदाकिनी रामकिंकर ने रामचरित मानस, मानव जीवन और रामकिंकर जी महाराज के शताब्दी वर्ष आयोजन को लेकर पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि नई पीढ़ी को सनातन धर्म से जोड?े के लिए तर्क संगत ढंग से सरल बनाकर जब तक नहीं समझायेंगे उन्हे श्रद्धा व भावना के आधार पर स्वीकार्य नहीं करा सकते हैं। रामचरित मानस कोई ग्रंथ, काव्य या साहित्य नहीं बल्कि वो विलक्षण कृति है जिसका प्रत्येक अक्षर मंत्र है जिसमें गूढ़ जीवन दर्शन छिपा हुआ है। इसमें केवल रामजी का चरित्र चित्रण नहीं है बल्कि हमारे व आपके जीवन की कथा है। सारे ग्रंथों का रस है रामचरित मानस। सनातन धर्म का प्रकाश आने वाली पीढ़ी को आलोकित करने उनके जीवन में इस प्रकार से आए कि उनका आत्मबल व मनोबल बढ़े, इसके लिए मानस को समझना होगा। भौतिक उन्नति कितनी भी कर लें लेकिन जब तक आंतरिक रूप से आध्यात्मिक बोध नहीं होगी जीवन में पूर्णता का अनुभव नहीं ले सकते हैं। इसीलिए रामकिंकर महाराज जी कहा करते थे व्यक्ति के साथ व्यक्तित्व का विकास भी होना जरूरी है। यदि कोई कमियां हैं तो आत्मनिरीक्षण कर आगे बढ़ें।
दीदी मां मंदाकिनी ने कहा कि दशरथ व दशमुख केवल त्रेता के ही पात्र नहीं हैं, वे संपूर्ण मानव जाति में समाहित हैं। प्रत्येक व्यक्ति में भी दस है लेकिन सभी की चरित्र में समानता नहीं हैं। दस से तात्पर्य दस इंद्रियों से हैं जिनमें पांच ज्ञानेद्रीय व पांच कामेन्द्रीय हैं। इसके साथ विवेक भी दिया हुआ है। जिसने विवेक का सदुपयोग कर लिया और लक्ष्य की प्राप्ति कर ली है वह दशरथ के समान धन्य हो गया और जिसने भोग का साधन बना लिया वह दशमुख के समान विनाश कर लिया। जनमानस की कथा है रामचरित मानस, पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष, हर धर्म व संप्रदाय में समान रूप से स्वीकार्य व सभी के लिए समान रूप से कल्याणकारी है। मनुष्य का अंतिम लक्ष्य क्या है सुख और शांति और जब तक राम और सीता की कृपा नहीं पायेंगे पूर्ण रूप से सुख नहीं पा सकेंगे। भगवान का नाम, धाम, कथा दिव्य है, जब कृपा हो जाये तो जीवन के सारे समस्याओं का समाधान मिल जायेगा। इसीलिए कहा गया है कि कलियुग में यदि सबसे सरल साधना कोई है तो वह है राम नाम। भगवान राम सुख और माता सीता शांति की प्रतीक है।
हमारी संस्कृति की प्रतीक हैं मां गंगा
दीदी मां मंदाकिनी ने कहा कि प्रसाद व मिठाई तथा भोजन व प्रसाद में अंतर तो हैं। जो दुकान में मिलेगी वह मिठाई व भगवान की चरणों में मिलेगी व प्रसाद। भोजन को प्रसाद बनाने के लिए जीवन से संकीर्णता को मिटाना होगा तभी 365 दिन भगवान से जुड़े रह सकेंगे। ठीक वैसे ही जैसे मंदिर व गंगा में अंतर है। मंदिर में जाने के अपने कुछ नियम कायदे हैं, वह आस्था का केन्द्र है। लेकिन गंगा चौबीसो घंटे सबके लिए समान रूप से उपलब्ध है, कहीं कोई भेद नहीं। हमारी संस्कृति की प्रतीक हैं गंगा इसीलए उन्हे मां कहा गया है।
स्कूली बच्चों तक भी पहुंचायेंगे राम नाम
दीदी मां मंदाकिनी ने कहा कि स्कूली बच्चों की अभी परीक्षाएं चल रही है जब उनकी परीक्षाएं हो जायेंगी तो निबंध जैसी प्रतियोगिता के माध्यम से राम नाम को हर बच्चों तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे, इसकी शुरूआत महाराज की जन्मस्थली मध्यप्रदेश के जबलपुर से करने जा रहे हैं, पश्चात और भी जगहों पर फैलाया जायेगा। शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में अभी जो पूरे देश भर में रामलेखन चल रहा है वह 1 नवंबर 2024 तक सवा अरब का लक्ष्य पूरा करना है जो कि अयोध्या में आयोजित समापन कार्यक्रम में महाराजश्री के चरणों में समर्पित किया जायेगा।
मंगलवार को संगोष्ठी का कार्यक्रम
मंगलवार, 19 मार्च को सिंधु पैलेस में युगतुलसी महाराज श्रीरामकिंकर जी के प्रभुत्व व दर्शन पर संगोष्ठी व सम्मान का कार्यक्रम हैं जिसमें छत्तीसगढ़ के हर जिले से चार-चार विद्वतजन शामिल होंगे और भी रामानुरागी आएंगे। पहला सत्र दोपहर 1 से 4 व दूसरा सत्र 5 से 9 बजे तक होगा।