काव्य कुंभ का अभिनव आयोजन
भोपाल
नव भूमिका साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था के तत्वाधान में नवाचार करते हुए “काव्य कुंभ" का अभिनव आयोजन सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की विशेषता यह थी कि इसमें उपस्थित सभी रचनाकारों को विशेष अतिथि मानकर क्रमशः पाँच-पाँच की संख्या में मंच पर बिठाया गया। उनका कलम देकर सम्मान किया गया, तत्पश्चात उनको रचना पाठ हेतु आमंत्रित किया गया। उपरांत अन्य पाँच रचनाकारों को आमंत्रित किया गया। अध्यक्षता या मुख्य अतिथि उद्बोधन में बचा समय रचनाकारों के रचना पाठ में उपयोग किया गया।
संस्था के सचिव चंद्रभान राही ने उपस्थित कवियों का स्वागत करते हुए इस नवाचार योजना पर प्रकाश डाला। उसके बाद अध्यक्ष रमेश नंद ने "काव्य कुंभ" नवाचार की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। संस्था की उपाध्यक्ष डॉक्टर अनीता सिंह चौहान ने नवाचार शृंखला में नए तरीके से कार्यक्रम की शुरुआत की एवं संचालन किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए सुचर्चित साहित्यकार सुरेश पटवा ने कहा कि सभी साहित्यकार एक ही पायदान पर खड़े होते हैं। इनमें कोई बड़ा-छोटा नहीं होता। प्रेमिल संबंध इनकी पूंजी होती है। इसी सिद्धांत पर यह नवाचार की भूमिका रखी है। उन्होंने एक ग़ज़ल सुनाई-
“दिल मेरा गुलाब है यारो,
ख़ुशबू लाजवाब है यारो।
रुतबे का रोग मत पालो,
आख़िर एक नक़ाब है यारो।
सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार विवेक रंजन श्रीवास्तव ने सार्थक रचना पढ़ी-
हर मन में थोड़ा रावण है
ज्यादा राम भरा होता है
जो आलोकित करे राम
को वो ये भूमिका है।
वरिष्ठ साहित्यकार गोकुल सोनी ने एक सुंदर गीत प्रस्तुत किया –
"वक्त के साथ तुमने जो बदला है रंग
मैं बदल जाऊं इतना, ये मुमकिन नहीं
वास्ते स्वार्थ के छोडूं अपनों का संग
मैं बहक जाऊं इतना ये मुमकिन नहीं।"
संस्था अध्यक्ष रमेश नंद ने ग़ज़ल का पाठ किया –
हमारी आत्मा को खल रहा है,
पड़ौसी से पड़ौसी जल रहा है।
सुप्रसिद्ध उपन्यासकार चन्द्रभान राही ने ग़ज़ल सुनाई –
मैं जुल्म सह रहा हूँ यही सोच-सोचकर,
शायद हो पत्थरों की बरसात आख़िरी
डॉक्टर गौरी शंकर गौरीश ने भोपाल की पहचान "जर्दा, पर्दा और गर्दा" पर रचना सुनाई। अशोक निर्मल, कृष्ण देव चतुर्वेदी, महेश प्रसाद सिंह, दिनेश भदौरिया और मनीष बादल ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। अगले क्रम में पंडित सुरेश नारायण शर्मा ने सोनम और राजा प्रकरण को अपनी कविता में पिरोया, अशोक व्यग्र जी ने सुनाया "चढ़ता जाता सूर्य ज्यों चढ़ता जाता ताप", शारदा दयाल श्रीवास्तव ने सुनाई "चलो आज मां को याद करते हैं।" बिहारीलाल सोनी अनुज ने पढ़ा, "पीड़ाओं की चादर में लिपटा हरेक चेहरा है।" कमल सिंह जी ने पढ़ा "दूध मलाई खाने देती, लोरी रोज सुनाती।" प्रतिभा द्विवेदी ने पढ़ा " कहती हैं श्मशान की लपटें, यही सत्य है जीवन का" कमलेश भार्गव ने पढ़ा "रात भीगी चांद भीगा भीगे हम और तुम", शिवांश सरल ने पढ़ा, एक दूजा गीत, दोनों ही सच्चे मनमीत" साथ ही कैलाश चंद्र शर्मा ने पढ़ा "करले ऐसे काम, जगत में नाम रहेगा" प्रमिला झरबड़े ने पढ़ा "स्वागत शौर्य पराक्रम की मैं गाथा आज सुनाती हूं।" कमलेश गुल नूर ने पढ़ा, "अगर आँखें मेरी तुम दान लोगे, तो मुझसे सारा हिंदुस्तान लोगे" प्रदीप कश्यप ने पढ़ा "मतलबी दिल से कभी दोस्ती करते नहीं हैं।" देवेंद्र जेठवानी ने हास्य रचना पढ़ी, "बेशक कुछ हसरतें रही बाकी" शशिकांत सक्सेना जी ने पढ़ा, "हां जनाब मैं इंसान तराशता हूं।" दिनेश गुप्ता मकरंद ने वेदों की महत्ता पर पढ़ा, विज्ञान और कुछ नहीं, वेद ही विज्ञान है।
कार्यक्रम के अंत में पंडित सुरेश तांतेड़ एवं विमान दुर्घटना में दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि दी गई।