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बीजापुर में शिक्षा : कमीशनखोरी, भ्रष्टाचार और लिचलिचे सिस्टम का खेल… सप्लाई का मलाई चाट रहे अफसर…

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गणेश मिश्रा। बीजापुर।

बीजापुर जिले में शिक्षा विभाग का विवादों से गहरा नाता रहा है। जो थमने का नाम नहीं ले रहा है। बच्चो के पैसों में सेंधमारी हो, खरीददारी हो या शिक्षकों को मिलने वाले प्रमोशन का मामला ही क्यों ना हो। एक सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी से बड़ा खुलासा हुआ है।

जिसमें स्कूल फिर चले अभियान में शिक्षा विभाग की अनियमितता और नियम विरुद्ध की गई बच्चों के किट और सामान की खरीददारी ने बीजापुर जिले में ही नहीं बल्कि राज्य भर में शिक्षा विभाग की किरकिरी हुई है और यह भी उजागर हुआ है कि डीएमएफ राशि से खरीददारी के लिए लाखों रुपए के प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान कर जिला शिक्षा अधिकारी बीजापुर को कार्य एजेंसी बनाने के बाद किस तरह विभाग द्वारा बीजापुर जिले के आदिवासी बच्चों को मिलने वाले सुविधाओं का बंदरबांट किया गया है।

डीएमएफ मद से पुनः संचालित शालाओं में अध्ययनरत छात्र छात्राओं के लिए स्लेट क्रय करने 3लाख 75 हजार, शिक्षा सत्र 2024_25 में नव प्रवेशी 10 हजार बच्चों को कॉपी पेंसिल और कंपास क्रय कर प्रदाय करने 5 लाख , 60 आवासीय पोटाकेबिन_आश्रम_छात्रावासों के लिए 50 ग्राम का ओडोमास 2 हजार नग की खरीदी के लिए 1 लाख 20 हजार और 5 हजार नग मच्छरदानी के लिए 14 लाख 70 हजार, 210 प्राथमिक शालाओं में पीतल की घंटी एवं हथौड़ी प्रदाय करने 4 लाख 47 हजार 3 सौ , जवाहर नवोदय विद्यालय बीजापुर में वाटर कूलर और वॉल फैन खरीदी के लिए 2 लाख रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान करते हुए प्रथम किश्त जारी कर जिला शिक्षा अधिकारी बीजापुर को कार्य एजेंसी बनाया गया था।

जब इस खरीदी और स्कूल तक पहुंचाए गए सामग्री की पड़ताल की गई तो यह पाया गया कि जिन स्कूलों को घंटी प्रदान किया गया है, वहां से हथौड़ी गायब है तो वही कंपास बॉक्स सामग्री , आश्रमों से ओडोमास और मच्छरदानियां गायब है।

अब सवाल यह उठता है कि जब खरीदी की गई है तो क्या बच्चों को प्रदाय ये सामग्री गई तो कहां गई? इसके पहले बता दे कि तिरपाल खरीदी का मामला उठाने के बाद कलेक्टर ने उसके प्रशासकीय स्वीकृति को निरस्त कर दिया था।

वही दूसरी ओर शिक्षा विभाग की कार्यशैली से शिक्षक काफी आक्रोशित है। क्योंकि बीजापुर जिला शिक्षा अधिकारी की मनमानी के चलते एचएम प्रमोशन में देरी हो रही है।

जिले के लगभग 55 से 60 सहायक शिक्षकों को प्रमोशन का लाभ मिलना था, जिसके लिए संगठन पिछले कई महीनों से डीईओ से गुहार लगा रहे है, परन्तु नाम उजागर ना करने की शर्त पर एक सहायक शिक्षक ने बताया कि लेन देन की वजह से प्रमोशन की पूरी लिस्ट अटकी पड़ी है, तो कुछ शिक्षक यह भी जानकारी दे रहे थे कि जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में वरीयता सूची में नाम जोड़ने के लिए भी लेन देन किया जाता है।

“सीएम का धौंस देते है डीईओ”
जब भी बीजापुर में शिक्षा विभाग में लापरवाही, भर्रा शाही , मनमानी , भ्रष्टाचार और मासूम आदिवासी बच्चों के सुविधाओं पर कटौती के मामलों को उजागर या प्रकाशित किया जाता है तो बीजापुर के जिला शिक्षा अधिकारी प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णु देव सायं का धौंस देते हुए यह कहते हुए नजर आते है कि शिक्षा विभाग प्रदेश के सीएम का प्रमुख विभाग है और उसके खिलाफ लिखने वालों पर कड़ी कारवाई करते हुए एफआईआर दर्ज कराई जायेगी, परन्तु बीजापुर जिले में शिक्षा विभाग में फैले रायता पर पॉलिश कर सीएम समेत मंत्रियों को गुमराह करने वाले जिला शिक्षा अधिकारी स्वयं शिक्षा विभाग की और जिले के आदिवासी बच्चों के भविष्य से सिर्फ खिलवाड़ ही नहीं कर रहे बल्कि शिक्षा विभाग की नैय्या डुबाने में लगे हुए है।

शिक्षा विभाग की उदासीनता की दास्तां यही खत्म नहीं होती। यहां तो जिला शिक्षा अधिकारी ने शिक्षा की अलख जगाकर देश को शिक्षित करने वाले अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ा है। 5 सितंबर को डॉ सर्वपल्ली राधा कृष्णन की याद में पूरे देश में शिक्षक दिवस मनाकर शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है, जिसके लिए बीजापुर जिला मुख्यालय में भी हर साल जिला स्तरीय समारोह आयोजित कर साल भर बेहतर कार्य करने वाले तमाम शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है, जो चुनौतियों के बीच बच्चों को शिक्षित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते, परन्तु इस साल के शिक्षक दिवस को शायद बीजापुर के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज किया जाएगा, क्योंकि जिला शिक्षा अधिकारी ने यह कहते हुए जिला स्तरीय समारोह आयोजित नहीं किया कि उन्हें राज्य सरकार से कोई आदेश प्राप्त नहीं हुआ है।

खरीदी में सेटिंग का खेल”
पुनर्संचालित एवं आश्रम, छात्रावासों के नाम पर चालू शिक्षा सत्र में डीईओ मार्फत जितनी भी सामग्री की खरीदी हुई, उनमें जमकर कमीशन का खेल हुआ। कमीशन के लिए क्रय मापदंडों को ताक पर रखकर चहेते सप्लायर को इसकी बागडोर सौंपी गई। पूरी प्रक्रिया की निष्पक्ष जांच होती है तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। कोटेशन से लेकर तमाम मापदंडों को अंधेरे में रखकर बच्चों का हक मारने में शिक्षा विभाग ने कोई कसर बाकी नहीं रखी।