कोरोना महामारी ने भारतीयों के फेफड़ों का किया है बड़ा नुकसान
नई दिल्ली:
कोरोना ने भारतीय लोगों के फेफड़ों को काफी कमजोर किया है। क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि कोविड-19 के कारण फेफड़े कमजोर हुए हैं। अध्ययन में पता चला है कि यूरोपीय और चीन के लोगों की तुलना में भारतीय लोगों के फेफड़ों को ज्यादा नुकसान पहुंचा है। अध्ययन में यह भी पता चला है कि कुछ लोग तो एक साल में इससे ठीक हो सकते हैं लेकिन अन्य लोगों को जिंदगीभर कमजोर फेफड़ों के साथ ही जीना होगा।
207 रोगियों के फेफड़ों का किया गया अध्ययन
अध्ययन में 207 लोगों के फेफड़ों पर परीक्षण किया गया। जिन रोगियों को हल्के या मध्यम और गंभीर कोविड हुआ था, उनके पूर्ण फेफड़ों की जांच की गई।, छह मिनट का वॉक टेस्ट, ब्लड टेस्ट और उनके स्वास्थ की जांच की गई।
44 फीसदी के फेफड़ों का बड़ा नुकसान
सबसे ज्यादा संवेदनशील फेफड़े का टेस्ट किया गया। इसे गैस ट्रांसफर (DLCO) कहा जाता है। इसके जरिए हवा से ऑक्सीजन लेने की क्षमता को मापा जाता है। जांच में पाया गया कि 44 फीसदी लोगों के फेफड़ों को नुकसान हुआ था। डॉक्टरों के अनुसार इसे काफी चिंताजनक बताया गया है। 35 प्रतिशत रोगियों में थोड़ा कम फेफड़ों को नुकसान पहुंचा था। 35% लोगों में फेफड़े सिकुड़नेकी समस्या थी। जिससे हवा भरते समय उनके फेफड़े पूरी तरह से फूल नहीं पाएंगे। 8.3% लोगों में हवा के रास्ते बंद होने की समस्या पाई गई, जिससे हवा का फेफड़ों में आना-जाना मुश्किल हो जाएगा। लाइफ टेस्ट संबंधी परीक्षणों से भी नकारात्मक प्रभाव का पता चला।
चीनी और यूरोपीय लोगों को कम नुकसान
जांच में कई तरह की चौंकाने वाली चीजों के बारे में पता चला। सीएमएस वेल्लोर के पल्मोनरी विभाग के डॉ डीजे क्रिस्टोफर ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि हर मामले में, भारतीय रोगियों का प्रदर्शन चीनी और यूरोपीय रोगियों से कमजोर रहा। इसके अलावा, चीनी और यूरोपीय लोगों की तुलना में शूगर और हाइपरटेंशन से जूझ रहे भारतीय लोगों की संख्या ज्यादा थी।
कुछ रोगियों को सांस की परेशानी के साथ ही जीना होगा
नैनवती अस्पताल में पल्मोनोलॉजी के हेड डॉक्टर डॉ सलिल बेंद्रे के अनुसार, कोविड के कुछ मरीजों को संक्रमण के लगभग 8-10 दिन बाद अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ी, ऑक्सीजन सपोर्ट और स्टेरॉयड उपचार लेने के बाद संक्रमण के बाद फेफड़ों में फाइब्रोसिस (सख्ती) हो गया। उन्होंने कहा कि इनमें से लगभग 95% रोगियों में फेफड़ों की क्षति धीरे-धीरे ठीक हो जाती है, जिससे 4-5% रोगियों में लंबे समय तक सांस लेने में परेशानी रह जाती है।