आजादी से पहले इन कंपनियों का देश में बजता था डंका, आज मिट गया नामो निशान
नई दिल्ली
देश में कई कंपनियां ऐसी रही हैं जिनका एक समय पर काफी जलवा हुआ करता था। लेकिन आज इन कंपनियों का नामो निशान तक मिट चुका है। एक समय बाजार में धूम मचाने वाली ये कंपनियां आज कहीं नहीं है। ये ऐसी कंपनियां हैं जो देश में आजादी से पहले से थीं। इन कंपनियों में से बहुत की नींव ब्रिटिश शासन के दौरान पड़ी थी। कई कंपनियां ऐसी भी हैं जिनका डंका आज भी पूरी दुनिया में बज रहा है। इनमें रिलायंस, टाटा सहित कई कंपनियां शामिल हैं। टाटा ग्रुप की शुरुआत साल 1868 में हुई थी। फूड सेक्टर की बड़ी कंपनी ब्रिटानिया साल 1892 में हुई थी। आज भी कंपनी का दबदबा बना हुआ है।
कंपनी का कारोबारी द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान तेजी से बढ़ा था। गोदरेज की शुरुआत भी आजादी से पहले साल 1897 में हुई थी। कंपनी का आज भी देश-विदेश में बड़ा कारोबार है। देश में करीब 70 ऐसी कंपनियां थीं जिनकी नींव आजादी से पहले पड़ी थी। इन कंपनियों ने देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दिया। आईए आपको बताते हैं ऐसी कंपनियों के बारे में जो आज बाजार से गायब हो चुकी हैं।
स्टेटस सिंबल था ये ब्रांड
एमएमटी की घड़ियां एक समय देश में काफी बिका करती थीं। हर कोई इस कंपनी की घड़ी लेना पसंद करता था। लोगों के लिए एचएमटी का ब्रांड एक स्टेटस सिंबल बन गया था। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय में एचएमटी की घड़ियां बननी शुरू हुई थीं। साल 1961 में भारत में एचएमटी की घड़ियों का प्रोडक्शन शुरू हुआ था। कंपनी ने जापान की सिटीजन वॉच कंपनी के साथ मिलकर एचएमटी का निर्माण शुरू किया था। कंपनी का कारोबार तेजी से बढ़ा था। एचएमटी की घड़ियों का बिजनेस 70 और 80 के दशक तक बुलंदियों पर था। लेकिन इसके बाद कंपनी का बुरा दौर शुरू हो गया था।
ये स्कूटर था लोगों की शान
देश में साल 1972 में सरकार द्वारा संचालित स्कूटर्स इंडिया लिमिटेड ने भारत में लैंब्रेटा स्कूटरों की मैन्युफैक्चिरिंग और सेल्स की शुरुआत की थी। कंपनी के विजय डीलक्स, विजय सुपर और लंब्रेटा स्कूटर देश की शान माने जाने लगे थे। देश में ये स्कूटर खूब बिका करते थे। लेकिन बाद में धीरे-धीरे ये कंपनी बाजार से गायब हो गई।
धूल खा रही धरोहर
फिल्मिस्तान स्टूडियो का भारतीय सिनेमा को ऊंचाईयों पर पहुंचाने में काफी योगदान रहा है। देश में साल 1943 में फिल्मिस्तान प्रोडक्शन हाउस की शुरुआत हुई थी। आर्थिक प्रबंधन कमजोर होने की वजह से बाद से इसे बेचना पड़ गया था। आज मुंबई में ये धरोहर धूल खा रही है। एक समय इसका काफी नाम हुआ करता था।