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2003 से 2020 तक केंद्र और राज्य की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत है संसदीय सचिवों की नियुक्ति… 97वें संविधान संशोधन से अब तक… जाने क्या है प्रावधान…

इम्पेक्ट न्यूज. रायपुर।

छत्तीसगढ़ में 2003 में भाजपा की सरकार बनी। उसमें संविधान के 97वें संशोधन के हिसाब से मुख्यमंत्री समेत अधिकतम 13 मंत्री ही मंत्रिमंडल में लिए जा सकते थे। ऐसे में छत्तीसगढ़ में क्षेत्रीय संतुलन स्थापित करने के लिए संसदीय सचिवों की नियुक्ति की राह पकड़ी गई। ताकि जिन इलाकों से मंत्री नहीं बनाए जा सके हैं वहां से विधायकों को राज्य मंत्री का दर्जा देकर संसदीय सचिव नियुक्त किया जा सके।

इसके बाद कांग्रेस नेता मोहम्मद अकबर और आरटीई कार्यकर्ता राजीव चौबे ने बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाकर संसदीय सचिवों की नियुक्ति को असंवैधानिक घोषित करने की अपील की। यह मामला भी काफी लंबा खिंचा। जब मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह अपनी 3री पारी खत्म कर रहे थे तब हाईकोर्ट का फैसला उनके पक्ष में आया पर सीमाओं का उल्लेख भी कर दिया गया।

अप्रैल 13, 2018 को बिलासपुर हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस राधाकृष्णन और जस्टिस शरद गुप्ता की खंडपीठ ने ये फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में संसदीय सचिवों की नियुक्ति को सही ठहराते हुए इसे बरकरार रखा।

छत्तीसगढ़ में रमन सरकार को राहत देते हुए हाईकोर्ट ने संसदीय सचिव मामले पर बहुप्रतिक्षित फ़ैसले को सार्वजनिक करते हुए रिट पीटिशन ख़ारिज कर दिया। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि अंतरिम आदेश स्थाई रुप से जारी रहेगा। अंतरिम आदेश में कोर्ट ने कहा था कि, इन्हें मंत्रियों वाले कोई अधिकार अथवा सुविधा नहीं मिलेगी।

कोर्ट ने ये भी कहा कि अंतरिम आदेश स्थाई रुप से जारी रहेगा। अंतरिम आदेश में कोर्ट ने कहा था कि, इन्हें मंत्रियों वाले कोई अधिकार अथवा सुविधा नहीं मिलेगी। कोर्ट ने फ़ैसले में कहा है कि, संसदीय सचिव पद जो कि मंत्री के समतुल्य है उसे राज्यपाल ने शपथ नही दिलाई ना ही उनका निर्देशन है इसलिए इन्हें मंत्रियों के कोई अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते।

अब जब कांग्रेस की राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी तो फिर राजनीतिक और क्षेत्रीय संतुलन का मसला आकर खड़ा हो गया है। जिससे निपटने के लिए संसदीय स​चिव की नियुक्ति की दिशा में प्रदेश मे कांग्रेस सरकार सबसे बड़ा फैसला ले लिया है। जिसके तहत 12 विधायकों को सीएम निवास में मंगलवार की शाम 6 बजे शपथ दिलाने की घोषणा की है।

क्या है कुल सदस्यों के 15 प्रतिशत मंत्री का मसला

सन् 2003 में संसद् ने संविधान का संशोधन करके यह अधिकथित किया कि राज्य में मंत्रियों की संख्या (इसमें मुख्य मंत्री सम्मिलित है) राज्य की विधान सभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।’

इससे पहले 2003 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने संसद की स्थायी समिति की सिफारिश को लागू करने का फैसला किया। काँग्रेस नेता प्रणव मुखर्जी की अगुआई वाली आंतरिक मामलों की संसद की स्थायी समिति की सिफ़ारिश पर कैबिनेट ने यह भी स्वीकार कर लिया कि मंत्रिमंडल का आकार निचले सदन की सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत ही होगा।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दल-बदल निरोधक क़ानून को और कड़ा बनाने के लिए एक संविधान संशोधन को मंज़ूरी दी। इसके तहत दल-बदल करने वाले व्यक्तियों को किसी लाभ के पद पर बैठने की अनुमति नहीं होगी।

चुनाव सुधारों की दिशा में एक और क़दम बढ़ाते हुए इस संशोधन को भी मंज़ूरी दे दी है कि लोकसभा या राज्य विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत को ही मंत्री बनाया जा सकता है।

संसद की स्थायी समिति की सिफ़ारिशों पर मंत्रिमंडल प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में हुई बैठक में 97वें संविधान संशोधन को स्वीकृति दी और इसे संसद के शीतकालीन सत्र में ही पेश किया गया।

पहले इस विधेयक में यह प्रावधान था कि दोनों सदनों की सदस्य संख्या के 10 प्रतिशत को मंत्री बनाया जा सकता है।

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