Health

तीन से पांच घंटे ही सोते हैं तो ‘टाइप 2 मधुमेह’ होने का खतरा ज्यादा

कम नींद लेने से मधुमेह  का खतरा बढ़ सकता है। एक अध्ययन में पाया गया है कि जो लोग रोजाना केवल तीन से पांच घंटे ही सोते हैं, उनमें ‘टाइप 2 मधुमेह’ होने का खतरा ज्यादा होता है। यह अध्ययन स्वीडन के उप्साला विश्वविद्यालय में हुआ था। अध्ययन में यह भी पाया गया कि स्वस्थ्य आहार खाने से भी नींद की कमी के कारण होने वाले मधुमेह  के खतरे को पूरी तरह से कम नहीं किया जा सकता है।

एक नए अध्ययन के अनुसार, जो लोग रोजाना केवल तीन से पांच घंटे ही सोते हैं, उनमें ‘टाइप 2 मधुमेह’ होने का खतरा अधिक होता है। यह अध्ययन स्वीडन के उप्साला विश्वविद्यालय में हुआ है। अध्ययन में पाया गया कि स्वस्थ्य खानपान अपनाने से भी नींद की कमी के जोखिम को पूरी तरह से कम नहीं किया जा सकता है। अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता क्रिश्चियन बेनेडिक्ट का कहना है कि नींद को प्राथमिकता देना जरूरी है, खासकर व्यस्त माता-पिता के लिए। अध्ययन में कम नींद और ‘टाइप 2 मधुमेह’ के बीच के संबंधों की जांच की गई। ‘टाइप 2 मधुमेह’ एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर शुगर को ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाता, जिससे शरीर में शुगर का लेवल बढ़ जाता है और लंबे समय में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

दुनियाभर में 46 करोड़ से अधिक लोग ‘टाइप 2 मधुमेह’ से पीड़ित हैं। यह अध्ययन इस बीमारी की गंभीरता को दशार्ता है।
पहले के अध्ययनों में भी कम नींद और मधुमेह के खतरे के बीच संबंध पाया गया था, वहीं स्वस्थ्य खानपान को इस खतरे को कम करने वाला बताया गया था। लेकिन यह नया अध्ययन इस बात पर सवाल उठाता है कि क्या सिर्फ स्वस्थ्य खानपान से नींद की कमी वाले लोगों में मधुमेह  का खतरा कम किया जा सकता है। अध्ययन में ब्रिटेन के बायोबैंक के डेटा का विश्लेषण किया गया, जो दुनिया के सबसे बड़े जनसंख्या डेटाबेस में से एक है। शोधकर्तार्ओं ने दस साल से अधिक समय तक लगभग 5 लाख लोगों पर अध्ययन किया।

अध्ययन में पाया गया कि रात में केवल तीन से पांच घंटे सोने वाले लोगों में मधुमेह का खतरा ज्यादा था। हालांकि शोधकर्तार्ओं ने यह भी पाया कि स्वस्थ्य खानपान अपनाने से इस खतरे को कम किया जा सकता है, लेकिन जो लोग रोजाना छह घंटे से कम सोते हैं, उनमें स्वस्थ्य खानपान के बाद भी मधुमेह  का खतरा बना रहता है।

अध्ययन के नतीजे इस धारणा को चुनौती देते हैं कि स्वस्थ्य खानपान नींद की कमी के कारण होने वाले मधुमेह के खतरे को पूरी तरह से खत्म कर सकता है। बेनेडिक्ट ने इस बात पर जोर दिया कि समग्र स्वास्थ्य के लिए नींद की भूमिका को पहचानना जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि नींद की कमी का प्रभाव व्यक्तिगत कारकों, जैसे कि आनुवंशिकी और व्यक्तिगत नींद की जरूरतों के अनुसार अलग-अलग हो सकता है।