अजब गांव : जहां गांववालों की चमगादड़ों से है गजब दोस्ती… इस गांव में करीब सात दशकों से लोगों के साथ रहे चमगादड़…
इम्पैक्ट डेस्क.
प्रतापगढ़: बैटमैन अगर उत्तर प्रदेश का निवासी होता तो निश्चित तौर उसका घर गोई गांव होता। जी हां, हम बात कर रहे हैं प्रतापगढ़ जिले के गोई गांव की, जो चमगादड़ों का एक प्रकार से सेंचुरी बना हुआ है। रात में निकलने वाले इस पक्षी के साथ गांव के लोगों की ऐसी दोस्ती है, जिसने हर किसी को हैरान कर दिया है। गांव में रहने वाले लोग और चमगादड़ एक-दूसरे के साथ बड़ी ही शांति के साथ रहते हैं। कोई किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता। चमगादड़ एक उड़ने वाला स्तनधारी है। इस पक्षी ने प्रतापगढ़ के इस छोटे से गांव को अपना आशियाना बनाया है। करीब 70 सालों से चमगादड़ यहां रह रहे हैं। कोरोना के समय में भी जब चमगादड़ों को कोरोना संक्रमण का जिम्मेदार ठहराया जा रहा था, तब भी इस गांव के लोगों ने उन्हें नहीं भगाया। आज के समय में गांव में बड़ी संख्या में चमगादड़ निवास कर रहे हैं। मध्य यूपी का यह गांव एक प्रकार से चमगादड़ों का अघोषित सेंचुरी बन गया है।
शैलेश पांडेय के घर में है डेरा
गोई गांव में संकड़ी गलियों से होते हुए जैसे ही आप शैलेंद्र पांडेय के बड़े घर तक पहुंचेंगे एक अलग प्रकार की आवाज आपको आकर्षित करेगी। आप यहां चमगादड़ों को देख सकते हैं। उनकी अलग प्रकार विशेष चीख को सुन सकते हैं। आम और बड़हल के पेड़ों पर बैठे चमगादड़ आपको अपनी तरफ खींचेंगे। शैलेंद्र पांडेय को इस चमगादड़ कॉलोनी के अनौपचारिक संरक्षक के रूप में माना जाता है। शैलेंद्र कहते हैं कि हम गोई गांव के लगभग 1500 लोग अब चमगादड़ों की चीख के आदी हो गए हैं। चमगादड़ न तो इंसानों को और न ही फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं।
चमगादड़ों को होता है दिशा ज्ञान
शैलेंद्र कहते हैं कि शुरुआत में मैंने पटाखों पर हजारों रुपये खर्च किए। यह उम्मीद की कि शोर उन्हें दूर भगा देगा, लेकिन जब भी शोर बंद हुआ तो वे वापस उन्हीं पेड़ों पर उड़कर आ गए। आखिरकार मैंने उनकी मौजूदगी स्वीकार कर ली। चमगादड़ों के निवास करने वाले पेड़ों पर वापस आने को लेकर वे कहते हैं कि इसका श्रेय चमगादड़ों की बहुत अध्ययन की गई दिशा बोध को जाता है । ये स्तनधारी रात में भोजन की तलाश करते हैं। ये ध्वनि- प्रतिध्वनि का उपयोग करते हैं। सूर्यास्त के बाद पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के आधार पर लाइट को ट्रैक कर सकते हैं।
वर्षों पहले बनाया था घर
ग्रामीणों का कहना है कि दशकों पहले गोई में चमगादड़ों ने महुआ और पाकड़ के पेड़ को अपना घर बनाया था। अब वे पेड़ नहीं बचे। इसके बाद चमगादड़ों के परिवार ने शैलेंद्र पांडे के आंगन में लगे आम और बड़हल के पेड़ों पर जमना शुरू किया। उसे ही अपना घर बना लिया। शैलेंद्र पांडे कहते हैं कि कुछ ग्रामीणों ने चमगादड़ों से छुटकारा पाने के लिए इन पेड़ों को काटने का सुझाव दिया, लेकिन इसके बाद चमगादड़ों को नए पेड़ चुनने होंगे। यह सोचकर इस विचार को त्याग दिया।
लोगों ने चमगादड़ों के साथ रहना सीखा
गांव के एक कॉलेज छात्र कलीम अहमद का कहना है कि लोगों ने अपने स्थायी मेहमानों के साथ मिलकर रहना सीख लिया है। मैं चमगादड़ों के साथ बड़ा हुआ हूं। अब वे मुझे डराते नहीं हैं। समाधान खोजने के लिए गांव की पंचायत ने कई बैठकें कीं, लेकिन असफल रहीं। कुछ लोग इस बात पर जोर देते हैं कि चमगादड़ उन्हें अपशकुन से बचाते हैं। कोविड के दौरान यह डर था कि चमगादड़ बीमारी फैला सकते हैं। लेकिन ग्रामीणों को तुरंत अहसास हुआ कि उनका डर निराधार था।
चमगादड़ों की आवाज जगाती है…
अमूमन दूसरे गांवों में लोग मुर्गों की आवाज सुनकर जगते हैं। गोई गांव में ग्रामीण चमगादड़ों की आवाज सुनकर जाग जाते हैं। प्रतापगढ़ जिला वन अधिकारी जेपी श्रीवास्तव कहते हैं कि गांव में लोगों को शुरुआती दिनों में कुछ आशंकाएं थीं। इसके बाद भी गांव के लोगों ने कभी भी चमगादड़ कॉलोनी के खिलाफ वन विभाग से शिकायत नहीं की है। दरअसल, चमगादड़ों के निवास का सकारात्मक पहलू भी है। पर्यावरणविद अजय क्रांतिकारी बताते हैं कि चमगादड़ उत्कृष्ट कीट नियंत्रक और प्लांट पॉलिनेटर्स होते हैं। ये लोगों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।