बदल सकते हैं जाति वाली पहचान, सरनेम पर HC का अहम फैसला : आरक्षण का क्या होगा, यह भी बताया…
इम्पैक्ट डेस्क.
जीवन के अधिकार के तहत हर व्यक्ति को समाज में सम्मानजनक पहचान का अधिकार देता है। जाति बताने वाले उपनाम (सरनेम) को बदलने की अनुमति देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी की। यह आदेश दो भाइयों की ओर से दायर की गई याचिका पर आया जिसमें उन्होंने सेंट्रल बोर्ड ऑफ एजुकेशन (सीबीएससी) की ओर से जारी लेटर को चुनौती दी थी। 1 जून 2017 के इस लेटर में सीबीएसई ने दोनों भाइयों के उपनाम बदलने के आवेदन को खारिज कर दिया था। वे 10वीं और 12वीं की मार्कशीट में अपना उपनाम बदलना चाहते थे।
याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि दिन-ब-दिन होने वाले अत्याचार की वजह से उनके पिता ने अपना नाम लक्ष्मण मोची से बदलकर लक्ष्मण नायक कर लिया है। लेकिन सीबीएसई ने यह कहकर प्रमाणपत्र में बदलाव से इनकार कर दिया कि उपनाम में बदलाव से याचिकाकर्ताओं की जाति में बदलाव होगा, जिसका दुरुपयोग किया जा सकता है। जस्टिस मिनी पुष्करणा ने कहा कि सीबीएसई की ओर से मार्कशीट में बदलवा से इनकार करना ‘पूरी तरह अनुचित’ है और यदि कोई व्यक्ति किसी के पूर्वाग्रह से ग्रसित होने से बचने के लिए किसी विशेष जाति के साथ अपनी पहचान नहीं कराना चाहता, तो इसकी अनुमति है। 19 मई को आए आदेश में कोर्ट ने कहा, ‘पहचान का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीवन के अधिकार का हिस्सा है।’ अदालत ने कहा, ‘यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि याचिकाकर्ताओं को एक ऐसी पहचान रखने का पूरा अधिकार है, जो उन्हें समाज में एक प्रतिष्ठित और सम्मानजनक पहचान देता है।’
अदालत ने स्पष्ट किया कि पिता के उपनाम में परिवर्तन से याचिकाकर्ताओं की जाति में परिवर्तन नहीं होगा या उन्हें किसी आरक्षण या किसी अन्य लाभ की अनुमति नहीं होगी जो नए उपनाम वाली जाति के लिए उपलब्ध हो सकता है। न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ता भाइयों को समाज में ‘प्रतिष्ठित और सम्मानजनक’ पहचान रखने का पूरा अधिकार है और अगर उन्हें अपने उपनाम के कारण कोई नुकसान हुआ है, तो वे निश्चित रूप से अपनी पहचान बदलने के हकदार हैं, जो सामाजिक संरचना में याचिकाकर्ताओं को सम्मान दे सके।’
अदालत ने कहा,’इसलिए सीबीएसई को निर्देश दिया जाता है कि वह याचिकाकर्ताओं के 10वीं और 12वीं के प्रमाणपत्रों में उनके पिता के नाम (बदले हुए उपनाम के साथ) अंकित करने के लिए आवश्यक बदलाव करे। अदालत ने कहा कि इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि जीवन के अधिकार के तहत गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है और इसमें किसी भी जातिवाद से बंधा न होना भी शामिल है। अदालत ने कहा कि सीबीएसई उपनाम के सुधार के लिए आवश्यक किसी भी दस्तावेज की मांग करने के लिए स्वतंत्र है।