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सुकमा इलाके के जंगल-पहाड़ पर माओवादी हमले में इन नई मौतों के बाद…?

सुकमा। यह पहली दफा होगा जब किसी माओवादी हमले के बाद सुकमा जिले से एक साथ 12 जवानों के शव अंतिम यात्रा के लिए निकलेंगे।

ये सारे शव उन स्थानीय आदिवासियों के हैं जो या तो मुख्यधारा में लौटकर सरकार के साथ खड़े हो गए। या उन युवाओं के हैं जो अपने दम पर अपनी नौकरी हासिल कर जीना चाहते थे।

यह पहली बार नहीं हुआ है जब एक शाम मुठभेड़ के बाद बिछड़े या लापता हो गए जवानों के शव दूसरे दिन की शाम ढोकर वहां तक लाए गए जहाँ से वे निकले थे।

मौके की तस्वीर

इससे पहले इसी घने जंगल और पहाड़ के बीच कई जवानों की शहादत का बड़ा इतिहास है। पर इस बार सरकार बदल गई है। जो सत्ता मे पहले थे अब वे विपक्ष की भूमिका में हैं। मैनें हाल ही में सुकमा इलाके के विधायक और प्रदेश के कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा से पूछा था उनके इलाके की तस्वीर बदलेगी या नहीं?

उन्होंने जवाब दिया था। सब कुछ बदल जाएगा। हम तेजी से स्कूल, आँगनबाड़ी और बाकि सुविधा अंदर तक पहुंचाने में लगे हैं। वे बेहद उत्साहित दिखे। आज उनके ही इलाके के 12 युवाओं की शहादत हो गई है। वे सुरक्षा संबंधी चूक का आरोप अपने ही तंत्र पर लगा रहे हैं। वे अब कुछ भी कहें पर यह जवाब उन्हें ही देना होगा। और कब तक…?

चिंतागुफा इलाके में माओवादियों के हमले में शहीद जवानों की जो मौके पर ली गई तस्वीर सामने आई है वह अपनी कहानी बयान कर रही है। वे मुठभेड़ में घायल होने के बाद या तो उपचार के अभाव में बेजान हो गए या माओवादियों ने हथियार छिनने से पहले अपना शिकार बनाया। घटना की हकीकत उनकी मौत के साथ छिप गई है। उनके जूते और घड़ियाँ संभवत: माओवादी लूट ले गए हैं। किसी के पैर में जूते और उनके पिट्ठू नहीं हैं।

बेहद दर्दनाक तस्वीर इससे पहले कई बार उस इलाके में देखी जा चुकी है। सवाल यह है कि मौतों के जवाब में शहादत के वीर गीत से बस्तर की हकीकत नहीं बदलेगी।

शहीद जवानों की सूची

शहीद जवानों में 12 डीआरजी के और पांच एसटीएफ के हैं

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