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छत्तीसगढ़ के कोरिया में मारे गए थे अंतिम 3 चीते… गांव वालों की गुहार पर महाराज रामानुज सिंहदेव ने किया था शिकार… ये है पूरी कहानी…

इम्पैक्ट डेस्क.

देश में 70 साल बाद चीतों की वापसी हो रही है। नामीबिया से लाए गए 8 चीतों को मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में कूनो नेशनल पार्क के बाड़े में रखे जाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर यह जीते लाए जा रहे हैं। कभी चीतों का घर रहे भारत में आजादी के वक्त ही चीते पूरी तरह विलुप्त हो गए। 1947-48 में देश के आखिरी तीन चीतों का शिकार मध्य प्रदेश के कोरिया रिसासत (अब छत्तीसगढ़) के महाराजा रामानुज प्रताप ने किया था। 1952 में भारत में चीतों को विलुप्त वन्य जीव घोषित कर दिया था। अब 70 साल बाद इंतजार की घड़ियां खत्म होने वाली है। देश की धरती पर एक बार चीता अपनी दस्तक दे देगा। 

ऐसा बताया जाता है कि 1947-48 में छत्तीसगढ़ के कोरिया रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव ने देश के आखिरी 3 एशियाई चीतों का शिकार किया था। इसके बाद से भारत में एशियाई चीतों को कभी नहीं देखा गया था। जानकारी के अनुसार महाराज रामानुज प्रताप सिंहदेव शिकार के बेहद शौकीन थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में बाघ, तेंदुए, हिरण, चीता, बारहसिंगा जैसे अनेक जानवरों का शिकार किया, जिसकी गवाही आज भी रामानुज पैलेस की दीवारों पर टंगे सिर देते हैं। 1948 में रामानुज प्रताप सिंहदेव बैकुंठपुर से लगे एक गांव के समीप जंगल में शिकार करने गए थे। ग्रामीणों ने जंगली जानवर के हमले की बात कही थी और मदद की गुहार लगाई थी। 

चीतों को मारने के बाद खिंचाई थी फोटो 
ग्रामीणों ने आदमखोर जंगली जानवर की शिकायत रामानुज प्रताप सिंहदेव से की थी। जिसके बाद महाराज शिकार के लिए निकल पड़े और उन्होंने एक साथ तीन चीतों का मार गिराया। शिकार किए गए तीनों नर चीते थे और पूरी तरह वयस्क भी नहीं हुए थे। परंपरा के मुताबिक महाराज ने तीनों मृत चीतों के साथ बंदूक लिए फोटो खिंचाई। ऐसा माना जाता है कि यह 3 चीते भारत के आखिरी एशियाई चीते थे और उसके बाद भारत में कभी एशियाई चीते नहीं देखे गए। वहीं भारत में चीतों की दोबारा वापसी हो रही है, तब अचानक से महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव के भारत के आखिरी चीतों के शिकार की बात फिर सुर्खियों में है। 

शिकार के 3 साल बाद चीते देखे गए थे
मीडिया की खबरों में महाराजा रामानुज प्रताप सिंह को भारत के आखिरी चीतों के हत्यारों के तौर पर पेश किया जा रहा है वहीं उनकी पोती अंबिका सिंहदेव ने इस पर अपनी नाराजगी जाहिर की। इसे लेकर अंबिका सिंहदेव ने कहा कि यह जरूर सच है कि मेरे बाबा ने चीतों का शिकार किया था, लेकिन इसके कोई आधिकारिक प्रमाण नहीं है कि वह देश का आखिरी चीता था। उनके पिता रामचंद्र सिंहदेव ने कहना था कि महाराज रामानुज प्रताप सिंह के चीतों का शिकार करने के बाद भी इस इलाके में चीते देखे गए थे। हालांकि अंबिका सिंहदेव ने अपने परिवार के सदस्यों से चीतों के शिकार की पूरी कहानी ही सुनी है। रामानुज प्रताप सिंहदेव के पुत्र रामचंद्र सिंहदेव भी मानते थे कि महाराजा रामानुज प्रताप सिंह के चीतों के शिकार करने की घटना के बाद भी उस इलाके में ढाई-तीन साल बाद भी चीते देखे थे, जहां शिकार किया गया था।

सरगुजा के महाराजा ने मारे 1170 बाघ
19वीं सदी में तत्कालीन सेंट्रल प्राविंस एंड बरार क्षेत्र की कोरिया महत्वपूर्ण रियासत थी। बैकुंठपुर इसकी राजधानी थी और शिवोमंगल सिंहदेव राजा थे। 18 नवंबर 1909 को शिवोमंगल सिंहदेव की मृत्यु के बाद उनके बड़े बेटे रामानुज प्रताप सिंहदेव कोरिया रियासत के महाराज बने। बालिग होने के बाद सन 1925 से उन्होंने पूरी तरह रियासत का कामकाज संभाल लिया। घने जंगल से घिरे इस इलाके में बाघ, तेंदुए, चीते जैसे खूंखार जानवरों थे। राजा अपनी वीरता दिखाने के लिए इनका शिकार किया करते थे। उस दौरान बाघों की संख्या और शिकार का सिलसिला अधिक था। विख्यात पक्षी विशेषज्ञ सालिम अली की आत्मकथा के एक अध्याय बस्तरः1949, में उन्होंने लिखा है कि सरगुजा के महाराज ने अपने जमाने में 1170 से अधिक बाघों का शिकार किया है। सरगुजा, कोरिया से लगी हुई रियासत थी।