देशद्रोह कानून : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा… इस पर पुनर्विचार करने में लगेगा कितना समय… आप इससे कैसे निपटेंगे?…
इम्पैक्ट डेस्क.
देशद्रोह कानून पर सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस पर कार्यपालिका के स्तर पर पुनर्विचार करना होगा क्योंकि इसमें राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता शामिल है। इसके साथ ही उन्होंने देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई टालने की मांग की।
कपिल सिब्बल ने रखी दलील
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता के संबंध में अदालत की कवायद को केवल इसलिए नहीं रोका जा सकता क्योंकि विधायिका को छह महीने या एक साल के लिए पुनर्विचार करने में समय लगेगा। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार करने में कितना समय लगेगा। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि कानून पर पुनर्विचार की प्रक्रिया चल रही है।
सीजेआई एनवी रमण ने कहा कि केंद्र के हलफनामे में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नागरिक स्वतंत्रता से संबंधित मुद्दों से अवगत हैं और उनका मानना है कि स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में राष्ट्र पुराने औपनिवेशिक कानूनों सहित औपनिवेशिक बोझ को छोड़ना चाहता है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को बताया कि देशद्रोह कानून के दुरुपयोग की चिंताएं हैं और अटॉर्नी जनरल ने खुद कहा था कि हनुमान चालीसा का जाप करने के एलान से ऐसे मामले सामने आ रहे हैं।
अदालत ने पूछा, आप इससे कैसे निपटेंगे?
कोर्ट ने आगे कहा कि हलफनामे में ही कहा गया है कि कानून का दुरुपयोग होता है, आप इससे कैसे निपटेंगे? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार का काम 3-4 महीने में पूरा करने का सुझाव दिया है। अदालत ने केंद्र से पूछा कि वह राज्य सरकारों को यह निर्देश क्यों नहीं देता कि 124ए के तहत मामले को तब तक स्थगित रखा जाए जब तक कि केंद्र पुनर्विचार की प्रक्रिया पूरी नहीं कर लेता।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से देशद्रोह कानून के तहत लंबित मामलों के बारे में सूचित करने को कहा और पूछा कि सरकार इन मामलों से कैसे निपटेगी। मामला कल 11 मई के लिए सूचीबद्ध किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को सरकार से निर्देश लेने के लिए भी कहा कि क्या राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार होने तक मामलों को स्थगित रखा जा सकता है।