District Beejapur

कैका मुठभेड़ में मृत नक्सली के अंतिम संस्कार का विरोध… किकलेर पहुंची सोनी सोढ़ी, जनता कांग्रेस जिलाध्यक्ष ने भी मुठभेड़ को ठहराया फर्जी, जांच की उठी मांग…

इंपैक्ट डेस्क.

बीजापुर। कैका में शुक्रवार 12 मार्च को तीन लाख के ईनामी माओवादी रितेश पुनेम को मुठभेड़ में मार गिराने पुलिस के दावे का सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोढ़ी एवं छग जनता कांग्रेस के जिला अध्यक्ष विजय झाड़ी ने खंडन किया है। शनिवार को मारे गए नक्सली का शव पीएम के बाद गंगालूर मार्ग पर स्थित किकलेर गांव उसके परिजन घर पहुंचा। इस दौरान पुलिस की मौजूदगी में शव को दफनाने का परिजनों समेत सोनी सोढ़ी ने पुरजोर विरोध किया। शव को लेकर ही किकलेर चौक पर ग्रामीण पुलिस का विरोध करने लगे। तनाव बढ़ता देख शव को परिजनों की इच्छानुसार घर ले जाया गया। जहां रिश्तेदारों के पहुंचने के बाद रविवार को अंतिम संस्कार की बात कही गई। हालांकि रविवार को अंतिम संस्कार होगा या नहीं, इस पर संशय की स्थिति बनी हुई है। सोनी का कहना था कि परिजन और गांव वाले ही तय करेंगे कि रविवार को शव का अंतिम संस्कार करेंगे या शव को सड़क पर रखकर किसी तरह का विरोध का विचार ग्रामीण कर रहे हैं, फिलहाल उन्हें इसकी जानकारी तो नहीं है, लेकिन घटना को लेकर संदेह जरूर है।

परिजनों और कुछ चश्मदीदों ने जैसा बताया है, इससे तो प्रतीत होता है कि मुठभेड़ फर्जी है। मृतक रितेश पूर्व में नक्सल था, लेकिन वह संगठन छोड़कर बीते तेरह महीने से गांव आकर रह रहा था। उसके शरीर पर गोलियों के निशान भी इस ओर इंगित करते हैं कि उसे काफी नजदीक से गोली लगी है। वे इस मामले को लेकर सड़क से लेकर न्यायालय तक लड़ाई लड़ेगी ताकि बस्तर में फर्जी मुठभेड़ों के नाम पर खून-खराबा बंद हो। इधर किकलेर पहुंचे जनता कांग्रेस के जिला अध्यक्ष विजय झाड़ी का कहना था कि प्रथम दृष्टया उन्हंे भी यह मुठभेड फर्जी लग रहा है। घटना के संबंध में मीडिया में आई खबरें और परिजनों एवं प्रत्यक्षदर्शीयों के कथनानुसार यह मुठभेड़ फर्जी प्रतीत हो रहा है। आज रितेषश पुनेम का शव किकलेर स्थित उसके परिजन के घर लाया गया था। इस दौरान पुलिस की तरफ से कफन-दफन की तैयारी भी की गई थी। चूंकि आदिवासी समाज में शव के कफन-दफन को लेकर कुछ नियम, रीति रिवाज भी है, तो मेरा मानना है कि पुलिस की तरफ से शव दफन को लेकर इस तरह की जल्दबाजी उचित नहीं थी। रही बात मुठभेड़ की तो प्रत्यक्षदर्शियों एवं परिजनों से मेरी चर्चा भी हुई, जिसमें उनका कहना था कि रितेष नक्सल संगठन से अवश्य जुड़ा था, लेकिन बीते डेढ़ साल से वह अपने गांव आकर अपने मामा-मामी के साथ रह रहा था। वह संगठन छोड़ चुका था और खेती बाड़ी कर अपना गुजारा कर रहा था। ऐेसे में एक निहत्थे आदिवासी को पकड़कर गोली मारने के आरोप जिस तरह से परिजन और कुछ प्रत्यक्षदर्शी लगा रहे हैं, कही ना कही पुलिस की इस कार्रवाई पर सवाल उठते हैं। इसलिए आदिवासी हितों को ध्यान में रखते हुए जनता कांग्रेस प्रदेष की सरकार, न्याय व्यवस्था से मांग करती है कि कैका मुठभेड़ की निष्पक्ष जांच हो, जिससे सच्चाई जनता के सामने आ सके।