National News

पड़ोसी देशों में हिंदुओं के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन पर वैश्विक चुप्पी चिंताजनक : उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली
 उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पड़ोसी देशों में हिंदुओं के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन पर वैश्विक चुप्पी पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हमारे पड़ोस से अपनी अंतरात्मा की आवाज पर चलने का पाप करने के कारण कठोर दमन के तहत भारत भागकर आए राज्यविहीन शरणार्थियों का मानवाधिकारों के नाम पर विरोध किया गया।

नई दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के स्थापना दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने मानवाधिकारों के सभ्यतागत संरक्षक के रूप में भारत की असाधारण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने हमारे पड़ोस में हिंदुओं की दुर्दशा के सबसे निराशाजनक पहलू और तथाकथित नैतिक उपदेशकों, मानवाधिकारों के संरक्षकों की बहरी चुप्पी की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा, “वे पूरी तरह से बेनकाब हो चुके हैं। वे ऐसी चीज के भाड़े के सैनिक हैं जो मानवाधिकारों के बिल्कुल विपरीत है। लड़कों, लड़कियों और महिलाओं के साथ किस तरह की बर्बरता, यातना, दर्दनाक अनुभव होता है, इसे देखें। हमारे धार्मिक स्थलों को अपवित्र होते हुए देखें।”

उन्होंने वैश्विक आक्रोश की कमी की ओर इशारा करते हुए कुछ क्षेत्रों में हिंदुओं द्वारा सामना किए जा रहे मानवीय संकटों पर अधिक ध्यान देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इस तरह के उल्लंघनों के प्रति बहुत अधिक सहनशील होना उचित नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि एक के बाद एक प्रकरणों में सबूत जमा हो रहे हैं कि “डीप स्टेट” उभरती शक्तियों के खिलाफ कानूनी लड़ाई में शामिल है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों का इस्तेमाल विदेश नीति के एक उपकरण के रूप में दूसरों पर शक्ति और प्रभाव डालने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। नाम लेना और शर्मिंदा करना कूटनीति का एक घटिया रूप है। आपको केवल वही उपदेश देना चाहिए जो आप करते हैं। हमारी स्कूल प्रणाली को देखें-हमारे यहां उस तरह की गोलीबारी नहीं होती है जो कुछ विकसित होने का दावा करने वाले देशों में नियमित रूप से होती है। उन देशों के बारे में सोचें जो मानवाधिकारों के ऐसे भयानक उल्लंघनों पर भी आंखें मूंद लेते हैं।

धनखड़ ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) की सराहना करते हुए कहा कि इस अधिनियम का उद्देश्य अपने देश में उत्पीड़न से बचने के लिए अपने विवेक का पालन करने वाले राष्ट्रविहीन व्यक्तियों को शरण प्रदान करना है। भारत का मानवाधिकार रिकॉर्ड बेजोड़ है। उन्होंने कहा कि दोस्तो, दुनिया भर में देखिए। मानवाधिकारों, खासकर अल्पसंख्यकों, हाशिए पर पड़े और समाज के कमजोर वर्गों के संरक्षण के मामले में आप पाएंगे कि भारत अन्य देशों से बहुत आगे है।

उपराष्ट्रपति ने भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने के लिए काम कर रही हानिकारक ताकतों के खिलाफ भी आगाह किया। उन्होंने कहा, हमारे अंदर और बाहर ऐसी हानिकारक ताकतें हैं जो एक सुनियोजित तरीके से हमें गलत तरीके से कलंकित करने की कोशिश करती हैं। ये ताकतें बहुत सक्रिय हैं और उनका एजेंडा मानवाधिकारों की चिंता से कोसों दूर है। इस अवसर पर एनएचआरसी की कार्यवाहक अध्यक्ष विजया भारती सयानी, एनएचआरसी के महासचिव भरत लाल और अन्य गण्यमान्य भी उपस्थित थे।

कुछ हानिकारक ताकतें भारत की खराब छवि पेश करने की कोशिश कर रही हैं: धनखड़

 उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि कुछ हानिकारक ताकतें भारत की ‘‘खराब छवि’’ पेश करने की कोशिश कर रही हैं और उन्होंने ऐसे प्रयासों को बेअसर करने के लिए ‘‘प्रतिघात’’ करने का आह्वान किया।

धनखड़ ने साथ ही कहा कि भारत को दूसरों से मानवाधिकारों पर उपदेश या व्याख्यान सुनना पसंद नहीं है। उन्होंने यहां राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए विभाजन, आपातकाल लागू किए जाने और 1984 के सिख विरोधी दंगों को ऐसी दर्दनाक घटनाएं बताया, जो ‘‘याद दिलाती हैं कि आजादी कितनी नाजुक होती है।’’

धनखड़ ने कहा, ‘‘कुछ ऐसी हानिकारक ताकतें हैं जो एक सुनियोजित रूप से हमें अनुचित तरीके से कलंकित करना चाहती हैं।’’ उन्होंने कहा कि इन ताकतों का अंतरराष्ट्रीय मंचों का इस्तेमाल कर ‘‘हमारे मानवाधिकार रिकॉर्ड पर सवाल उठाने’’ का ‘‘दुष्ट इरादा’’ है। उन्होंने कहा कि ऐसी ताकतों को बेअसर करने की जरूरत है और भारतीय संदर्भ में वे इसके लिए ‘‘प्रतिघात’’ शब्द का इस्तेमाल करेंगे।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि इन ताकतों ने सूचकांक तैयार किए हैं और ये दुनिया में हर किसी को ‘रैंक’ दे रही हैं ताकि ‘‘हमारे देश की खराब छवि’’ पेश की जा सके। उन्होंने भुखमरी सूचकांक पर भी निशाना साधा, जिसकी सूची में भारत की रैंकिंग खराब है। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान सरकार ने जाति और पंथ की परवाह किए बिना 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराया।