मोदी राज में देश हुए 638 ट्रेन हादसे, जानिए UPA सरकार में क्या थे आंकड़े?
नई दिल्ली
देश में एक बार फिर से हुए ट्रेन दुर्घटना ने रेलवे की सुरक्षा पर सवाल खड़ा कर दिया है. 18 जुलाई के दिन उत्तर प्रदेश के गोंडा में ट्रेन हादसा हो गया है. चंडीगढ़ से डिब्रूगढ़ जा रही डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस के कोच पटरी से उतर गए थे. क्या आप जानते हैं कि 2014 से 2024 में अभी तक एनडीए सरकार में कितने रेल दुर्घटनाएं हुई हैं. आज हम आपको बताएंगे कि किस सरकार में कितनी रेल दुर्घटनाएं हुई हैं.
रेल हादसा
देश में बीते कुछ महीनों में रेल हादसों की संख्या बढ़ी है. गोंडा में डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस हादसा के अलावा एक महीना पहले 17 जून की सुबह पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में एक ट्रेन हादसा हुआ था. सरकार का दावा है कि 2004 से 2014 के बीच हर साल औसतन 171 रेल हादसे होते थे. जबकि 2014 से 2023 के बीच सालानाऔसतन 71 रेल हादसे हुए है. इसी तरह 2004 से 2014 के बीच सालाना औसतन 86.7 घटनाएं ट्रेन के बेपटरी होने की सामने आई थी, जो 2014 से 2023 के बीच घटकर 47.3 हो गई है.
यूपीए सरकार में कितने रेल हादसा
जानकारी के मुताबिक यूपीए सरकार के 10 साल में 1,711 रेल हादसे हुए थे. जबकि एनडीए के मोदी सरकार में 2014 से मार्च 2023 के बीच 638 हादसे हुए हैं, वहीं 2024 में तीन बड़े रेल हादसे हुए हैं. यूपीए सरकार में 867 मामले ट्रेन से पटरी के उतरने के सामने आए थे. जबकि एनडीए सरकार में 426 मामले सामने आए हैं. आंकड़ों के मुताबिक यूपीए सरकार में रेल हादसों में 2,453 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 4,486 लोग घायल हुए थे. वहीं, एनडीए सरकार में 781 मौतें और 1,543 लोग घायल हुए हैं.
रेलवे की सुरक्षा
अब सवाल ये है कि रेलवे की सुरक्षा पर सरकार कितना खर्च कर रही है. बता दें कि मोदी सरकार में रेलवे के लिए 1,78,012 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है. इसका मतलब हर साल औसतन 17,801 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. जो 2014 से पहले की तुलना में ढाई गुना ज्यादा है. 2004 से 2014 के बीच रेलवे के लिए 70,273 करोड़ रुपये का बजट दिया गया था. वहीं पटरियों के सुधार और मरम्मत पर वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2023 के बीच हर साल औसतन 10,201 करोड़ रुपये का खर्चा किया गया है. जबकि वित्त वर्ष 2005 से वित्त वर्ष 2014 के बीच हर साल औसतन 4,702 करोड़ रुपये खर्च हुए थे.
भारतीय रेलवे
बता दें कि भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है. भारत में रेलवे को लाइफलाइन कहा जाता है. यहां हर दिन ढाई करोड़ से ज्यादा यात्री ट्रेन से सफर करते हैं. इतना ही नहीं 28 लाख टन से ज्यादा की माल ढुलाई भी होती है. अमेरिका, रूस और चीन के बाद दुनिया का चौथा सबसे लंबा रेल नेटवर्क भारत का ही है.
बेपटरी ट्रेन के मामले
आंकड़ों के मुताबिक, एनडीए और यूपीए के शासनकाल की तुलना करें तो साल 2013 से 2014 के बीच 52 ट्रेनें पटरी से उतरीं. वहीं, साल 2021-22 के बीच 26 ट्रेनें बेपटरी हुईं. आंकड़े बताते हैं कि यूपीए सरकार की तुलना में मोदी सरकार में ट्रेन बेपटरी होने के मामलों में 50 फीसदी की कमी आई.
क्रॉसिंग पर 99% एक्सीडेंट घटे
यूपीए सरकार के दौरान साल 2013 से 2014 के बीच क्रॉसिंग पर 51 हादसे हुए. वहीं, साल 2021-2022 में क्रॉसिंग पर मात्र 1 हादसा हुआ. यानि क्रासिंग पर हादसों में 99 फीसदी की कमी आई जो बताती है कि मोदी सरकार का क्राॅसिंग पर एक्सीडेंट रोकने के लिए कई अहम कदम उठाए गए. 2022 में 31 मार्च तक 17,720 रेलवे फाटकों में 11,079 रेलवे फाटकों को सिगनल से इंटरलॉक कर दिया गया है.
इतना ही नहीं, ब्रॉड गेज मार्ग में सभी मानव रहित फाटकों (यूएमएलसी) को भी हटा दिया गया है. इन स्थानों पर रोड अंडर ब्रिज (आरयूबी), रोड ओवर ब्रिज (आरओबी) बनाकर मानवयुक्त रेलवे फाटकों को हटाने का कार्य प्रगति पर है. वित्तीय वर्ष 2022-23 में 880 मानवयुक्त रेलवे फाटकों को बंद किया गया.
10 सालों में 50% ट्रैक मेंटिनेंस बढ़ा
मोदी सरकार और यूपीए सरकार की तुलना करें तो पता चलता है कि 10 सालों में ट्रैक मेंटिनेंस 50 फीसदी तक बढ़ा है. मोदी सरकार के दौरान साल 2022-23 में 5,227 किमी रेलवे ट्रैक का मेंटिनेंस हुआ. वहीं, यूपीए सरकार के शासन के साल 2013-14 से इसकी तुलना करें तो यह आंकड़ा 2,885 किलोमीटर तक ही था.
हर साल 3,716 किमी ट्रैक बना
पिछले 10 सालों की बात करें तो 37,159 किमी के कंप्लीट ट्रैक रिन्यूअल (सीटीआर) किए गए. 10 सालों का औसत निकाला जाए तो ये 3,716 किमी प्रतिवर्ष तैयार किया गया. ट्रैक अपग्रेडेशन की बात करें तो 31 मार्च 2023 तक 65 फीसदी ब्रॉड गेज ट्रैक पूरा हो गया. साल दर साल रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने के लिए बजट और निर्माण कार्यों का दायरा बढ़ाया गया.
राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष
राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष की स्थापना साल 2017-18 में की गई थी. इसकी स्थापना रेलवे की सुरक्षा के लिए नवीनीकरण और बेहतर करने के लिए की गई थी. इसके तहत अगले पांच साल के लिए 1 लाख करोड़ रुपए का कोष बनाया गया था. साल 2021-22 के अंत तक राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष के जरिए कुल 74,175.75 करोड़ रुपए खर्च हुए. नीति आयोग की सिफारिश पर इसे पांच साल के लिए बढ़ाने पर सहमति हुई.