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दुनिया के इतिहास का सबसे गर्म दिन 21 जुलाई 2024…, 84 साल का रिकॉर्ड टूटा

लंदन

21 जुलाई 2024 यानी पिछला रविवार धरती के इतिहास का सबसे गर्म दिन था. इससे पहले धरती ने ऐसी गर्मी पिछले साल 6 जुलाई को रिकॉर्ड की थी. यह जानकारी कॉपरनिकल क्लाइमेट चेंज (C3S) सर्विस ने दी है. इसके मुताबिक रविवार को वैश्विक औसत तापमान 17.09 डिग्री सेल्सियस था. जिसने 1940 से अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए.

इस भयानक गर्मी की वजह से यूरोप और अमेरिका में हीटवेव और जंगल की आग फैली हुई है. इससे पहले इतना तापमान 6 जुलाई 2024 को रिकॉर्ड किया गया था. तब पारा 17.08 डिग्री सेल्सियस था. कहने को तो तापमान में सिर्फ 0.01 डिग्री सेल्सियस का अंतर आया है. लेकिन इसकी वजह से जो आपदाएं आएंगी या आ रही हैं, वो भयानक होंगी.

C3S के निदेशक कार्लो बुऑटेंपो ने कहा कि यह ग्लोबल मीन टेंपरेचर है. इस समय गर्मी की बड़ी वजह दुनिया में चल रही हीटवेव्स हैं. दक्षिणी अमेरिका भयानक हीट डोम से जूझ रही है. चीन में हीटवेव के बाद अब बारिश, बाढ़ और फ्लैश फ्लड का असर है. औसत तापमान 35 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है. उत्तरी अफ्रीका में पारा 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है.

अभी और बढ़ सकता है तापमान
दुनिया भर में तापमान में वृद्धि देखी गई है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले सप्ताह अमेरिका, यूरोप और रूस के बड़े हिस्से में भीषण गर्मी ने कहर बरपाया है। यही वजह है कि तापमान के अभी और आगे जान की संभावना जताई जा रही है। कॉपरनिकस सेवा के निदेशक कार्लो बुआनटेम्पो ने कहा कि 'यह संभव है कि इस सप्ताह रविवार का रिकॉर्ड भी टूट जाए, क्योंकि दुनिया भर में गर्मी का कहर जारी है।' पिछले साल 3 जुलाई से 6 जुलाई तक लगातार चार दिनों तक गर्मी का रिकॉर्ड टूटा था। वैज्ञानिकों का कहना है कि जीवाश्व ईंधन के जलने से हो रहे जलवायु परिवर्तन के चलते उत्तरी गोलार्द्ध में अत्यधिक गर्मी पैदा की थी।

पूरी दुनिया में बढ़ती गर्मी की वजह से आपदाएं

यहां तक कि अंटार्कटिका अपनी सर्दियों के मौसम में भी अधिकतम तापमान दर्ज कर चुका है. अंटार्कटिका के अर्जेंटाइन आइलैंड पर मौजूद यूक्रेन के वर्नाडस्की रिसर्च बेस पर जुलाई का तापमान 8.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है. यह बेहद ज्यादा है.

लंदन स्थित ब्रिटेन इंपीरियल कॉलेज में ग्रांथम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट चेंज एंड एनवायरमेंट के साइंटिस्ट फ्रेडरिक ओट्टो ने बताया कि हम ऐसे किसी मौके को सेलिब्रेट नहीं कर सकते. हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. तापमान लगातार बढ़ रहा है.

लोगों और इकोसिस्टम के लिए मौत की सजा

फ्रेडरिक ने बताया कि यह लोगों और इकोसिस्टम के लिए मौत की सजा से कम नहीं है. यह जलवायु परिवर्तन का नतीजा है. इसके साथ इस बार अल-नीनो का असर भी देखने को मिल रहा है. इन दोनों पर ही आरोप लगा सकते हैं. लेकिन जिम्मेदार तो इंसान ही हैं.

बर्कले अर्थ के साइंटिस्ट जेके हॉसफादर ने कहा कि जितना ज्यादा कार्बन उत्सर्जन होगा, तापमान उतना ही ज्यादा हो जाएगा. उत्सर्जन, ग्रीनहाउस गैस और अल-नीनो ने मिलकर दुनिया का पारा चढ़ा दिया है. आमतौर पर दुनिया का तापमान 12 से 17 डिग्री सेल्सियस के बीच घूमता रहता है. लेकिन यह अब अधिकतम पर है.

साल भर से हर महीने टूटा रिकॉर्ड
रविवार का रिकॉर्ड पिछले साल के तापमान से थोड़ा ही ज्यादा है, लेकिन बुआनटेम्पो पिछले 13 महीनों के तापमान में उल्लेखनीय बदलाव की ओर ध्यान देने को कहता हैं। जून 2023 से अब तक का हर महीना पिछले सालों के इसी महीने की तुलना में धरती का सबसे गर्म महीना दर्ज किया गया है। इस तरह साल 2023 सबसे गर्म साल साबित हुआ है, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि साल 2024 पिछले वर्ष के रिकॉर्ड को भी पार कर सकता है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन और अल नीनो ने तापमान को और भी बढ़ा दिया है।

जुलाई अंत या अगस्त का पारा और ऊपर जाएगा

धरती का औसत तापमान जुलाई के अंत और अगस्त के शुरुआत में सबसे ज्यादा होता है. लेकिन यह डेटा तो इस महीने की शुरुआत में ही रिकॉर्ड हो गया. यानी जुलाई का अंत या अगस्त का तापमान फिर रिकॉर्ड तोड़ सकता है.

इंसान हर साल वायुमंडल में 4000 करोड़ टन कार्बनडाईऑक्साइड रिलीज करता है. वो भी जीवाश्म ईंधन जलाकर. जिसकी वजह से वायुमंडल गर्म होता जा रहा है. इस पर सोने पर सुहागा ये कि प्रशांत महासागर में इस बार अल-नीनो का असर भी है.  

 

धरती पर बढ़ रहा खतरा

बुआनटेम्पो ने कहा, 'वास्तव में चौंकाने वाली बात यह है कि पिछले 13 महीनों के तापमान और पिछले रिकॉर्ड के बीच कितना बड़ा अंतर है। हम अब वास्तव में अज्ञात क्षेत्र में हैं। जैसे-जैसे जलवायु गर्म होती जा रही है, हम आने वाले महीने और वर्षों में नए रिकॉर्ड टूटते हुए देखेंगे।' कॉपरनिकस सेवा के आंकड़े ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। वैज्ञानिक इसे धरती पर खतरे के रूप में देख रहे हैं। बर्कले अर्थ डेटा प्रोजेक्ट पर काम करने वाले जलवायु वैज्ञानिक जेके हॉसफादर ने कहा कि 13 रिकॉर्ड महीनों के बाद यह 'नया रिकॉर्ड निश्चित रूप से एक चिंताजनक संकेत है।' उन्होंने आगे कहा कि यह इसे और चिंताजनक बनाता है क्योंकि अधिक संभावना है कि 2024 रिकॉर्ड स्तर पर 2023 को भी पीछे छोड़ देगा।