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आखिर क्यों हैं निशाने पर बस्तर के सबसे बुजुर्ग कांग्रेसी नेता अरविंद नेताम…

सुरेश महापात्र। आजादी से करीब पांच बरस पूर्व 1942 में आदिवासी नेताम परिवार में जन्में अरविंद नेताम की उम्र अब करीब 80 बरस की हो गई है। वे अविभाजित मध्य प्रदेश के सबसे बड़े आदिवासी नेता रहे। बस्तर से केंद्रीय मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री का पद हासिल करने वाले इकलौते कद्दावर रहे। एक समय था जब छत्तीसगढ़ के शुक्ल बंधुओं श्यामाचरण और विद्याचरण के बराबर खड़े हो गए और दिग्विजय सिंह की सीएम की कुर्सी को चुनौती देते मध्यप्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री की दौड़ का सबसे बड़ा चेहरा बनकर उभरे

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#शब्द कितने मारक होते हैं… यह विनोद दुआ के जाने के बाद पता चला…

सुरेश महापात्र। सन् 1954 में जन्मे और सन् 2021 में अपनी मौत से पहले विनोद दुआ ने पत्रकारिता को ना जाने कितने शब्दों से सजाया। टीवी पत्रकारिता में उनके शब्द और शैली ने कम से कम दो पीढ़ी के पत्रकार तैयार किए। उनकी मौत के बाद सोशल मीडिया में राइट विंग यानी भाजपा समर्थक उनके कहे एक शब्द का इस्तेमाल उनके ही खिलाफ कर रहे हैं। यह शब्द था ‘पाखंड’। वैसे यह शब्द अब पूरी तरह से राजनैतिक हो गया है। इस शब्द का इस्तेमाल पत्रकार विनोद दुआ ने द

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पंजाब में कोई भी मुख्यमंत्री बने, पर इस घटना से मीडिया की जो भद् पिटी है उसका अध्ययन कम चिंतन ज्यादा जरूरी…

सुरेश महापात्र। पंजाब का फैसला आने से पहले से व्यंगकार शरद जोशी की तीन पंक्तियां सोशल मीडिया पर तैर रही थीं। मुख्यमंत्री तीन प्रकार के होते हैंचुने गए मुख्यमंत्रीरोपे गए मुख्यमंत्रीऔरदो की लड़ाई में तीसरा मुख्यमंत्री पंजाब में इन पंक्तियों की सार्थकता साबित हो चुकी हैं। यानी तीसरे तरह के मुख्यमंत्री आज चरणजीत सिंह चन्नी सुबह 11 बजे मुख्यमंत्री की शपथ ले लेंगे। मीडिया के तमाम सूत्र बुरी तरह फेल हुए। किसी की नजर इस नाचीज पर पड़ी ही नहीं। कोई जिक्र के लायक तक नहीं समझ रहा था। जब

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क्या सरकारों से भरोसा उठ रहा है? यदि ऐसा है तो अभी भी वक्त है सुप्रीम कोर्ट अपनी लक्ष्मण रेखा लांघ ले…

सुरेश महापात्र। 25 मार्च 2020 को भारत के प्रधानमंत्री के लॉक डाउन की घोषणा के बाद यकायक सब कुछ असमान्य नहीं हुआ। बल्कि यह क्रमश: होता रहा। जब दूसरे चरण के लॉक डाउन की बात उठी तो महानगरों में काम करने पहुंचे दिगर राज्यों के प्रवासी मजदूरों के लिए जीने की राह कठिन होने लगी। काम ठप होने से रोजगार बंद हो गया और जिन ठिकानों पर वे रहते थे वहां से खदेड़े जाने लगे। हालात बदतर होते चले गए और नई बीमारी के संक्रमण का जिस तरह से खतरा

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अजीत जोगी के बाद…?

दिवाकर मुक्तिबोध। छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन के बाद यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि उनके नेतृत्व में गठित जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का भविष्य क्या होगा। कांग्रेस से अलग होने के बाद जोगी ने तीन वर्ष पूर्व नई प्रादेशिक पार्टी बनाई थी जिसकी पहिचान राज्य की तीसरी राजनीतिक शक्ति के रूप में हुई और इसने काफी हद तक इसे सिद्ध भी किया। वर्ष 2018 के अंत में हुआ विधान सभा चुनाव उसका पहिला चुनाव था जिसमें उसके पाँच उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। बसपा से उसका चुनावी

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एनजीओ और अफसर के बीच पेंच… रेप का केस…

दबी जुबां से… / सुरेश महापात्र। एनजीओ यानी अशासकीय संस्था जिनके प्रोजेक्ट की रिपोर्ट में एक बिंदु सामान्यत: यही लिखा रहता है कि यह जीरो इन्वेस्टमेंट के तहत है। …और इसी 0 के आधार पर एनजीओ को काम के लिए इतनी राशि जारी हो जाती है कि जिसका अनुमान सहज लगाना कठिन है। यह अफसाना नहीं हकीकत है। छत्तीसगढ़ शासन के कम से कम तीन ऐसे विभाग हैं जिनमें एनजीओ क्रियाशील हैं और जमकर काम कर रहे हैं।  इनमें कई विभाग शामिल हैं पर स्कूल शिक्षा, महिला एवं बाल विकास,

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दंतेवाड़ा में भाजपा जहां से चली थी… वहीं ना पहुंच जाए…

अजय सरस्वती श्रीवास्तव। दन्तेवाड़ा जिले में बीजेपी जिन परिस्थितियों में स्थापित हो पाई थी वो बेहद ही कठिन थी, स्व.महेन्द्र कर्मा जैसा लोकप्रिय और दिग्गज नेता वे जब अपनी राजनीति के पूर्ण वेग में थे तब दन्तेवाड़ा में बीजेपी का झंडा उठाने वाले गिने चुने लोग ही थे। बाद में दन्तेवाड़ा बीजेपी का जिला संगठन इतना मजबूत हो गया कि एक पंचायत सचिव को दिग्गज महेंद्र कर्मा के आगे खड़ा कर चुनाव जीतवा ले गया… सत्ता के 15 सालों में सत्ता के दीमक ने छत्तीसगढ़ बीजेपी संगठन की बुरी तरह

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जोगी जी के साथ जो चला गया…

दबी जुबां से…/ सुरेश महापात्र। जोगी जी नहीं रहे… छत्तीसगढ़ की राजनीति में अजित जोगी का मतलब सदैव चुनौती ही रहा। आखिरी बार वे जिंदगी की जंग में पराजित हो ही गए। जोगी जी की हम पत्रकारों के लिए ऐसी भूमिका रही कि छत्तीसगढ़ की राजनीति की चर्चा में यदि जोगी जी का एंगल ना हो तो पत्रकार अपढ़ स्थापित हो जाए… वे एक ऐसे राजनेता जिसे सुनने के लिए बस्तर में बिन बुलाए भीड़ जुट जाती थी। उनके भाषण यथार्थ से परे होकर भी श्रोताओं को वास्तविकता से ऐसे

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छत्तीसगढ़ में भाजपा मांगे न्याय…

दबी जुबां से / सुरेश महापात्र। प्रदेश में राज्य सरकार के काम काज से संतुष्ट लोगों की संख्या भाजपा से असंतुष्ट कार्यकर्ताओं की संख्या से कम है। हां, यह कहने—सुनने में भले ही अजीब लगे पर छत्तीसगढ़ की राजनीति कुछ ऐसी ही चल रही है। यह मामला तब बाहर आया जब उत्तरप्रदेश में कांग्रेस के बस कांड के चलते नेशनल और रिजनल मीडिया में कांग्रेस को बड़ी जगह मिल रही थी।  यहां के भाजपा कार्यकर्ता सोशल मीडिया में अपने नेताओं पर कुड़कुड़ा रहे थे। एक कार्यकर्ता ने तो खुलकर अपनी

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छत्तीसगढ़ में शिक्षा की प्रयोगशाला…

दबी जुबां से / सुरेश महापात्र। हम तो बस इतना ही याद दिला सकते हैं कि बीते चार—पांच सालों में इसी छत्तीसगढ़ में किन अफसरों ने शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने को लेकर क्या और कैसे प्रयोग किए हैं… लॉक डाउन के दौरान छत्तीसगढ़ सरकार शिक्षा को लेकर काफी संवेदनशील रवैया अपना रही है। इसे अपनाने की जरूरत भी है। मुख्यमंत्री लगातार शिक्षा की दशा और दिशा को लेकर प्रयोगधर्मी होते दिख रहे हैं। अभी दो दिन पहले कैबिनेट ने छत्तीसगढ़ में कक्षा 11 वीं और 12 वीं में आईटीआई का

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