HealthHospital

कोरोना काल में डाक्टर ने किया 20 घंटे का सफल ऑपरेशन

रायपुर।

डॉक्टर का पेशा ऐसा है कि वे हर समय में अपने पेशे के लिए सजग रहते हैं और चिकित्सा सेवा देने में पीछे नहीं हटते हैं,चाहे कोरोनाकाल ही क्यों न हो?

कुछ ऐसा ही हुआ 17 वर्षीय सीमा (परिवर्तित नाम) के साथ। उसे ब्रेन ट्यूमर हो गया था,यह एक असामान्य ट्यूमर था जिसे निकाल पाना डाक्टरों के लिए एक चुनौती था।

वी केयर हॉस्पिटल में 20 घंटे की लगातार चलने वाली सर्जरी के बाद डॉ हर्षित मिश्रा व टीम ने सीमा को दूसरा जीवन दान दिया। डॉ हर्षित मिश्रा ने बताया कि सीमा बिलासपुर की रहने वाली है।

वहां के डॉक्टरों ने उसे रायपुर रेफर कर दिया। चेकअप के बात पता चला कि उन्हें ब्रेन में ट्यूमर है। डॉ मिश्रा के अनुसार इस तरह के केस हजारों में एक निकलते हैं।

यह ट्यूमर ब्रेन में था साथ ही कान और स्पाइन पर लगातार दबाव बना रहा था। मरीज की हालत इतनी गंभीर हो चुकी थी की उसका चलना भी मुुुश्किल हो गया था।

बच्ची को सुरक्षित रखते हुए ट्यूमर निकालना काफी चैलेंजिग था। सर्जरी के पहले काफी तैयारी भी की जिसके कारण सब अच्छी तरह संभव हो गया।

20 घंटे लगातार हमने टीम के साथ ऑपरेशन किया। सुबह 8 बजे से शुरू होने वाला ऑपरेशन अगले दिन 4 बजे खत्म हुआ। इस बीच सीमा का परिवार भी बाहर कश्मकश में था।

आखिरकार आपरेशन सफल रहा, जिसमें 6 सेंटीमीटर का ट्यूमर निकला। इसकी साइज काफी बड़ी थी यही कारण है कि समय भी सामान्य से ज्यादा लगा।

अब सीमा स्वस्थ है और जल्द ही उसकी छुट्टी भी होने वाली है। क्या है ब्रेन ट्यूमर–मस्तिष्क में कोशिकाओं में असामान्य रूप से बढऩे पर जो गांठ बनती है उसे ही ब्रेन ट्यूमर कहते हैं।

इसे गंभीरता से लेना चाहिए। इस दौरान सिर दर्द, उल्टी लगना, चक्कर आना, सिर भारी होना और घूमना जैसे लक्षण ज्यादा होते हैं। गौरतलब है कि डॉ मिश्रा दिल्ली एम्स से न्यूरोसर्जन की पढ़ाई किए हैं। वे शुरू से छत्तीसगढ़ के लोगों को बेहतर चिकित्सा सुुविधा देना चाहते थे यही कारण है कि वे वापस रायपुर आए।

अब तक लगभग 500 अपरेशन कर चुके हैं। डॉ हर्षित मिश्रा की पत्नी डॉ पूनम मिश्रा गाइनिकॉलाजिस्ट हैं। एक ही प्रोफेशन में होने के कारण एक दूसरे की परेशानी समझ आती है। इस ऑपरेशन के बारे में श्रीमती मिश्रा का कहना है कोविड काल में ऐसा केस आना भी अलग अनुभव था।

डॉ मिश्रा ने कई ऑपरेशन किए हैं पर इसे लेकर वो काफी तैयारी किए थे। जब सुबह निकले तो मुझे लगा कि 4,5 घंटे में आ जायेंगे। पर समय बढ़ता गया। सर्जरी के दौरान अंदर फोन भी नही ले जाना होता है। ऐसे हालात में बस घड़ी की सुई देखना और मन को तसल्ली देना ही एक चारा था। 6 घंटे होने के बाद हॉस्पिटल स्टाफ को मैं बार बार फ़ोन कर पूछ रही थी। ऐसा लग रहा था कि किसी तरह बस समय निकले और रिजल्ट अच्छा सुनाई दे। कोविड की वजह से चाहते तो डॉ. इसे किसी दूसरे हॉस्पिटल रेफर कर सकते थे लेकिन पेशेंट की हालत देख कर मन इसकी इजाज़त नहीं दिया। श्रीमती मिश्रा का कहना है की वो रात मैं कभी नही भूल सकती।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!