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IMPACT EXCLUSIVE : कांफिडेंस लेवल उंचा रखने वीडियो का सहारा ले रहे माओवादी… युद्ध नीति में जरूरी बदलाव और आधार इलाकों में पैठ बनाए रखने डिजिटल प्लेटफार्म का उपयोग बढ़ा रहे…

गणेश मिश्रा. बीजापुर।

दण्डकारण्य में जड़े जमा चुके माआवादियों ने अबूझमाड़ से लेकर दक्षिण बस्तर को अपना आधार इलाका बना लिया है। बीते दो दशक में माओवादियों ने अपने आधार इलाकों में ना सिर्फ संगठन का विस्तार किया, बल्कि गुरिल्ला वार नीतियों में बड़ा बदलाव भी किया। इसी बदलाव के साथ तकनीकी तौर पर माओवादियों ने खुद को मजबूत करना शुरू कर दिया है।

वे अब डिजिटल प्लेटफार्म का खुलकर उपयोग कर रहे हैं। विडियो एडिटिंग और स्क्रिप्ट के अुनसार विडियो प्रोडक्शन ने सुरक्षा बलों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। कल तक केवल बैनर, पाम्फलेट और पोस्टर से वार का तरीका पूरी तरह बदल रहा है। इसकी जगह पर डिजिटल मीडिया को माओवादी अपना नया हथियार बना रहे हैं। यह आधार इलाके में उनकी पकड़ को मजबूत करने और विस्तार करने में सहायक हो रहा है।

बड़े हमलों में अपनी सफलताओं को कैमरे में कैद कर नई स्टैटजी से अंदरूनी गांवों में आम आदिवासियों के बीच हमलों के दौरान अपनाई गई रणनीति, हमलों की आवश्यकता पर बल देते हुए माओवाद की तरफ ध्यानाकर्षण में काफी हद तक कामयाब भी हुए।

दक्षिण बस्तर में 2005 में जुडूम के प्रादूर्भाव के बाद से मैदानी इलाकों में नक्सली हमलों में तेजी आई। छापामार युद्ध नीति के बूते गत डेढ़ दशक में माओवादियों ने बीजापुर, दंतेवाड़ा और सुकमा में कई बड़े हमलों को अंजाम दिया।

गुरिल्ला युद्ध में दक्ष हो चुके माओवादी संगठन की तरफ से वीडियो फूटेज के संबंध में सुरक्षा मामलो के जानकार एक अफसर (नाम ना छापने की शर्त पर) का कहना है कि यह नक्सलियों की वार स्ट्रैटजी का ही हिस्सा हैं। वे मनोवैज्ञानिक तौर पर अपने लड़ाकों को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।

अंदरूनी इलाकों में जहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है, बड़ी आबादी निरक्षर है। माओवादी उनके बीच अपनी पैठ कायम करने वीडियो फूटेज का सहारा लेते हैं। गांव के युवाओं को अपने संगठन से जोड़ने उन्हें उत्तेजित करने माओवादियों के लिए इस तरह के वीडियो मददगार भी साबित हो रहे हैं।

टीसीओसी (टैक्टिकल काउंटर आपरेशन कैंपेन) के तहत नक्सली बड़ी वारदातें करते हैं। बीते डेढ़ दशक में हुए बड़े हमलों में जवानों पर घात लगाकर किए गए हमलों की समीक्षा में यह बातें भी सामने आई है कि नक्सलियों की तरफ से हर बार अपनी युद्ध नीति में काफी हद तक बदलाव किया। वे अब वीडियो बनाकर अपने हमलों की सफलता को प्रदर्शित कर रहे हैं यह उनकी वार नीति में भी मददगार साबित हो रहा है।

हर हमले के बाद बनाए गए वीडियो के जरिए विश्लेषण से नक्सलियां को अपनी स्ट्रैटजी बदलने, फोर्स की मुव्हमेंट को समझने, खामियों को उजागर करने के साथ सुरक्षा बल के जवानों का आत्म विश्वास कमजोर करने और लाल लड़ाकों को उत्साहित करने में मदद मिल रही है। मिनपा हमले पर आधारित वीडियो का कनेक्शन भी इससे जुड़ा है। जिसके जरिए फोर्स के बढ़ते दबाव के बीच नक्सलियों के आकाओं को संगठन में नई उर्जा फूंकने में मदद मिलती है।

इन हमलों के वीडियो जारी किए

बीजापुर में मुरकीनार कैम्प पर अटैक का सबसे पहला विडियो जारी किया गया। इसके बाद ताड़मेटला में सीआरपीएफ की सर्चिंग पार्टी पर हमले का विडियो बनाया गया। इस हमले में 76 जवानों की शहादत ने जहां पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। इसके बाद बुरकापाल, मदनवाड़ा और अब दो माह पहले सुकमा के मिनपा के जंगल में घात लगाकर किए गए हमले का वीडियो भी नक्सलियों द्वारा जारी किया गया।

मिलि​ट्री साईकोलॉजिस्ट वर्णिका शर्मा कहती हैं ‘इसका साईकोलॉजिकल इफेक्ट है हम देखेंगे कि यह कोई बड़ी बात नहीं है। माओवादी भी सामानंतर सत्ता के अभिलाषी हैं। माओवादी हर बड़े हमले के बाद अपनी बात को जस्टिफाई करना चाहते हैं।’ उन्होंने कहा कि ‘माओवादी अपने विडियो में टीसीओसी शब्द का बार—बार उपयोग किया है इसका मतलब है टैक्टिकल काउंटर आपरेशन कैंपेन…’

वर्णिका कहती हैं ‘इसके तहत वाइल्ड प्रापेगंडा स्ट्रेटजी के तहत वे 60—70 परसेंट ओरिजिलन कंटेट के साथ 30 परसेंट अपना मेन कान्सेप्ट एड करते हैं। जैसा उनके विडियो में साफ दिखता है कि वे सुरक्षा बलों के खिलाफ बात करते हैं… हमेशा उन्होंने काउंटर टैक्टिक ही अपनाई है।’

वे आगे कहती हैं ‘इससे वे भ्रम फैलाने की पूरी कोशिश करते हैं। यह उनकी टैक्टिस का सामान्य सा भाग है। इस तरीके से वे स्वयं को जस्टिफाई करने की कोशिश करते हैं। क्योंकि उनकी मूल सप्लाई लाइन तो जनतंत्र यानी जनता ही है। वे हमले के विडियो बनाकर भय पैदा करके जनता को जोड़ने और हमले को जस्टिफाई करके जनता को स्थाई तौर पर अपने साथ जोड़ना चाहते हैं और उनमें से कुछ प्रभावित होकर स्थाई तौर पर जुड़ जाएं यह उनका प्रयास होता है।’

वर्णिका ने बताया कि वे सैन्य मनोवैज्ञानिक हैं और पिछले 12 बरस से बस्तर में माओवादी हमले और उसकी परिस्थितियों के साथ जूझते फोर्स और उस जोन के लोगों पर पड़ने वाले प्रभावों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन कर रही हैं।

क्या कहते हैं बस्तर आईजी पी सुंदर राज….

अपना जनाधार बढ़ाने और अपने साथियों को मोटिवेट करने के लिए ऐसे विडियो का सहारा लेते हैं। क्योंकि ये लगातार कमजोर हो रहे हैं। पुलिस उन पर भारी पड़ रही है। इसके चलते वे डिजिटल प्लेटफार्म का उपयोग बढ़ा दिया है। हम जहां सड़कों के माध्यम से सभी इलाकों को कनेक्ट किया जा रहा है। पामेड़, तर्रेम और जगरगुंडा जैसे इलाकों को हमने कनेक्ट कर दिया है। बचे हुए इलाकों को जोड़ने के बाद नक्सलियों का आधार इलाका खत्म हो जाएगा।

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