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छत्तीसगढ़ में भाजपा मांगे न्याय…

दबी जुबां से / सुरेश महापात्र।

प्रदेश में राज्य सरकार के काम काज से संतुष्ट लोगों की संख्या भाजपा से असंतुष्ट कार्यकर्ताओं की संख्या से कम है। हां, यह कहने—सुनने में भले ही अजीब लगे पर छत्तीसगढ़ की राजनीति कुछ ऐसी ही चल रही है। यह मामला तब बाहर आया जब उत्तरप्रदेश में कांग्रेस के बस कांड के चलते नेशनल और रिजनल मीडिया में कांग्रेस को बड़ी जगह मिल रही थी। 

यहां के भाजपा कार्यकर्ता सोशल मीडिया में अपने नेताओं पर कुड़कुड़ा रहे थे। एक कार्यकर्ता ने तो खुलकर अपनी पोस्ट फेसबुक पर डाली और साफ कहा कि भाजपा के नेताओं को कम से कम प्रियंका से सीखने की जरूरत है कि विपक्ष होने का ऐहसास कैसे कराया जाता है। कहना साफ है कि भाजपा के भीतर भारी बेचैनी छाई हुई है। प्रदेश अध्यक्ष को लेकर फिलहाल कोई फैसला सामने नहीं आया है। लोग केंद्रीय नेतृत्व की ओर मुंह गड़ाए बैठे हैं।

प्रदेश अध्यक्ष को लेकर कोई फैसला हो जाए तो किसके नेतृत्व में आंदोलन करना है इसकी भूमिका तैयार की जा सकेगी। यानी मैदान में भाजपा के कार्यकर्ता पूरी तरह सक्रिय प्रदर्शन और आंदोलन के मूड में हैं। यहां भाजपा के अंदरखाने में सबसे बड़ी पीड़ा राज्य में नेतृत्व को लेकर है। नेता प्रतिपक्ष को संपूर्ण छत्तीसगढ़ में भाव नहीं मिल रहा है। उनकी स्थिति ऐसी है कि पद में हैं तो जिम्मेदारी निभा रहे हैं…। 

भाजपा के बड़े नेता पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह अपने बयानों को लेकर सामने तो आ रहे हैं पर वजन थोड़ा कम हुआ है। उन्हें तो भूपेश बघेल बिना नाम लिए ही निपटा दे रहे हैं। सरकार ने किसानों के लिए राजीव गांधी किसान न्याय योजना की जोरदार शुरूआत की और दूसरे ही दिन एक लिस्ट जारी कर बताया कि भाजपा के किस नेता के खाते में कितनी—कितनी रकम जमा की गई है। यानी उनके ही कार्यकर्ताओं को चिढ़ाने की ऐसी कोशिश कि किसी ने सोचा ही नहीं…

डा. सिंह के करीबी ओएसडी ओपी गुप्ता की करतूत से अब उनका पूरा कुनबा जेल में है। जबिता मंडावी फरार थी उसे भी पुलिस ने गिरफ्तार करके अपना काम पूरा कर लिया है। बस्तर के लोगों को अच्छे से याद है कि जब जबिता बस्तर में जिला सदस्य का चुनाव जीती थीं तो पैसा कैसे और किसने बहाया था? उसके बाद जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने के लिए पैरवी किसने करवाई थी? यह सब कुछ इतिहास में दर्ज है ही अब ये सब भी दर्ज हो गया है।

उधर मुख्य विपक्षी दल भाजपा के कार्यकर्ता राजनीतिक वनवास के लिए आला नेताओं को गरियाने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे। ये जिस तरह से अपने नेताओं को गरिया रहे हैं उससे साफ है कि यदि अब भाजपा में राजनीतिक नेतृत्व सौंपने में किसी प्रकार की त्रूटि होती है तो उसका नतीजा मैदान में भी देखने को मिलेगा।

भूपेश का न्याय…

भूपेश सरकार अपने महत्वाकांक्षी योजना न्याय को लेकर किसी से भी कमियां सुनने को तैयार नहीं है। उन्हें लग रहा है कि इस सरकार ने वह काम कर दिखाया है जिसके बारे में विपक्ष की पूरी घेराबंदी रही। प्रदेश में भाजपा के नेता किसानों को 2500 रुपए प्रतिक्विंटल के भाव से धान खरीदी के लिए चुनौती दे रहे थे। राज्य सरकार अपनी सीमाओं को नियमों के चलते लांघ नहीं सकती थी। यह समझ तब आई जब केंद्र ने समर्थन मूल्य के मसले पर साफ तौर से अपना हाथ झटक दिया। अब राज्य सरकार की मुसीबत यह थी कि किसानों को देना भी है और कायदे के दायरे से बाहर भी निकलना है। भारी मशक्कत के बाद योजना को मूर्तरूप दिया गया। किसानों को न्याय से जो भी हासिल हुआ वह तो हुआ ही साथ ही न्याय योजना ने देश की मीडिया में राज्य सरकार को बड़ा नाम दिलाया।

कानूनी दांव—पेंच का न्याय…

छत्तीसगढ़ के दो शक्तिशाली ब्यूरोक्रेट मुकेश गुप्ता और अमन सिंह इन दिनों कानून के दांव—पेंच में फंसे ही हुए हैं। बड़ी बात तो यह है कि शुरूआती झटका खाने के बाद सधे हुए तरीके से पूरे विरोधियों को भूपेश सरकार एक—एक कर साध रही है। पर एक बात और भी है जिस पर लोगों का ध्यान कम है कि कुछ ऐसे अफसर भी हैं जो सरकार डाल—डाल तो वे पात—पात वाली स्थिति में हैं। इन्हीं में से एक हैं पाठ्य पुस्तक निगम के महाप्रबंधक अशोक चतुर्वेदी। इनके खिलाफ कुल पांच मामले ईओडब्लू और एसीबी में दर्ज किए गए। पहले तीन मामले में हाईकोर्ट से स्टे ले लिया। इसके बाद इसी महीने दो नए मामले दर्ज किए तो इस पर सुप्रीम कोर्ट से स्थगन ले आए। ये भी एक प्रकार का न्याय ही तो है… एक ओर रास्ता खोलो और दूसरी तरफ का रास्ता बंद करो…

ब्यूरोक्रेसी के साथ न्याय…

छत्तीसगढ़ में आने वाले सप्ताह में ब्यूरोक्रेट के साथ न्याय की तैयारी पूरी हो चुकी है। कम से कम दर्जनभर जिलों के कलेक्टरों के बदलने की स्थिति है। लिस्ट में संसोधन के लिए तमाम मशक्कत की जा चुकी है। माना जा रह है कि बस चिढ़िया बैठी और लिस्ट बाहर…। दर्जनभर से ज्यादा जिला अधिकारी बदलेंगे यह बात बीते एक माह से बाजार में है। डायरेक्ट और प्रमोटिव का काम्बिनेशन भी तैयार है। बचे हुए बैच से लेकर आने वाले बैच के अधिकारियों की भी लिस्टिंग हो चुकी है। दो से तीन साल का कार्यकाल पूरा करने वालों को भी गिना जा चुका है। हर कोई इस लिस्ट का इंतजार कर रहा है। बड़ी बात यह है कि भूपेश सरकार बनने के बाद यह पहली बार है जब लिस्ट को लेकर चर्चा आम है और लिस्ट गायब है… और तो और अधिकारियों को भी सीएम के न्याय का इंतजार है।

सोशल मीडिया में न्याय…

प्रदेश में अब कोरोना के मरीजों के आंकड़े तेजी के साथ बढ़ रहे हैं। बीते सप्ताह जहां हम दहाई के आंकड़े में पहुंच गए थे… अब आंकड़ा दो सैकड़ा के करीब पहुंच गया है। फिर भी राहत है कि यहां अभी भी कम्यूनिटी स्प्रेड नहीं हुआ है। प्रवासी मजदूरों में जिस तरह से संक्रमण के मामले सामने आए हैं इससे लोग चिंतित हैं। गनीमत है एक सप्ताह पहले तक श्रेष्ठता की होड़ अब खत्म हो गई है। सिस्टम जमीनी हकीकत के मुताबिक काम करने की कोशिश कर रहा है। बस इस बात का गम है कि तमाम व्यवस्थाओं के बावजूद प्रवासी मजदूरों की सभी परेशानियों को दूर करने में हम नाकाम रहे… सात मजदूरों की मौत क्वरेंटीन सेंटर में हो गई। राहत इतनी है कि सोशल मीडिया में मीडिया के रतजगा का नतीजा मजदूरों के हित में रहा… हांलाकि अब सरकार दूसरे तरीके से सोशल मीडिया में अपने विरोधियों को निपटा रही है वही बागों में बहार है जैसा…

और अंत में…
बीते सप्ताह हमने जस्ट फार नॉलेज पूछा था कि कोई अफसर यदि दिल्ली जाता है तो उसे क्वेरंटीन रहना होगा या नहीं? जवाब मिल गया है — रहना होगा! क्योंकि दिल्ली से लौटने के बाद मंत्रालय पहुंचे आला अफसर को बताया गया कि क्वेरंटीन रहना होगा…

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