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छत्तीसगढ़ में शिक्षा की प्रयोगशाला…

दबी जुबां से / सुरेश महापात्र।

हम तो बस इतना ही याद दिला सकते हैं कि बीते चार—पांच सालों में इसी छत्तीसगढ़ में किन अफसरों ने शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने को लेकर क्या और कैसे प्रयोग किए हैं…

लॉक डाउन के दौरान छत्तीसगढ़ सरकार शिक्षा को लेकर काफी संवेदनशील रवैया अपना रही है। इसे अपनाने की जरूरत भी है। मुख्यमंत्री लगातार शिक्षा की दशा और दिशा को लेकर प्रयोगधर्मी होते दिख रहे हैं। अभी दो दिन पहले कैबिनेट ने छत्तीसगढ़ में कक्षा 11 वीं और 12 वीं में आईटीआई का कोर्स कराने का अनुमोदन कर दिया है। अब हायर सेकेंडरी कक्षा के सर्टिफिकेट के साथ ही बच्चों को भविष्य के लिए राह चुनने की आजादी होगी। इसमें पृथक से संचालित आईटीआई ट्रेड को लेकर क्या होगा फिलहाल स्पष्ट नहीं है पर एक राह तो खुली ही है।

इसी के साथ राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ में पंजीकृत समिति के माध्यम से प्रदेश में 40 अंग्रेजी माध्यम स्कूल संचालन की घोषणा की है। ये बेहद महत्वपूर्ण घोषणा है। इसके तहत यदि सही खबर है तो राज्य में एक पंजीकृत सोसाइटी होगी जिसके अधीन अंग्रेजी व हिंदी माध्यम के उत्कृष्ठ शालाओं का संचालन किया जाएगा। इस पंजीकृत समिति का प्रारूप क्या होगा? और इसमें संचालन समिति किस तरह से शिक्षा गुणवत्ता सुधारने के लिए कोशिश करेगी यह फिलहाल भविष्य के गर्भ में ही है।

हम तो बस इतना ही याद दिला सकते हैं कि बीते चार—पांच सालों में इसी छत्तीसगढ़ में किन अफसरों ने शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने को लेकर क्या और कैसे प्रयोग किए हैं।

तो इसमे सबसे पहला नाम एसीएस टू सीएम सुब्रत साहू का ही आता है। वे पूर्व में शिक्षा विभाग के सचिव भी रहे। उनके कार्यकाल में प्रदेश में 72 अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों का संचालन करने का फैसला लिया गया। जिसमें पीपीपी मॉडल को रेखांकित किया गया।

उस समय भारत सरकार की योजना मॉडल स्कूल के तहत सीबीएसई से राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत इसका संचालन किया गया। जिसमें सीबीएसई के पाठ्यक्रम के तहत कक्षा 6वीं से 10वीं के लिए बच्चों को शिक्षा देने की व्यवस्था की गई। यह योजना फलीभूत नहीं हो पाई।

इसके बाद समग्र शिक्षा अभियान का संचालन किया गया। इसमें केंद्र सरकार द्वारा 75 प्रतिशत और 25 प्रतिशत राज्य सरकार द्वारा व्यय किया जाना था। इसी के तहत 72 मॉडल स्कूल का प्लान बनाया गया। तत्कालीन भाजपा सरकार ने इसके लिए पीपीपी मॉडल की जोर शोर से घोषणा की। इसके लिए शासन के साथ डीएवी प्रबंधन ने मेमोरंडम आफ अंडरस्टैंडिंग साइन ​किया है। इसके बाद डीएवी स्कूल प्रबंधन को सभी 72 शालाओं को संचालन के लिए 30 साल लीज पर दे दिया गया। इस लीज के तहत संसाधन राज्य सरकार ने मुहैया करवाए। जिसमें भवन और अन्य व्यवस्थाएं समाहित की गईं।

शैक्षणिक संबंधी व्यवस्था का दायित्व यानी एकेडमिक व्यवस्था डीएवी की जिम्मेदारी रही। शिक्षा के अधिकार के तहत 25 प्रतिशत सीटों के जगह पर डीएवी प्रबंधन को 35 प्रतिशत सीट आरटीई से फीस देने का वादा कर दिया गया। डीएवी प्रबंधन ने इसी भवन में शिक्षा के लिए कक्षा पहली से 12 वीं कर दिया। इसके बाद राज्य सरकार का कोई नुमाइंदा इन शालाओं में झांकने गया भी है या नहीं यह कहना कठिन है। इन शालाओं में प्रथम वर्ष में बड़ी संख्या में भर्ती की गई। इसके बाद फिर वही ढाक के तीन पात…

इसके बाद कार्यकाल आया गौरव द्विवेदी का। उनके शिक्षा सचिव बनने के बाद फिर नए सिरे से योजना गढ़ी गई। इसके क्रियान्वयन के लिए समग्र शिक्षा अभियान के तहत योजना बनाई गई इसमें केंद्र और राज्य का शेयर 60:40 था। इसके तहत कई ऐसे प्रयोग किए गए जिसमें एनजीओ की भूमिका भी बड़ी रही। साथ ही बुनियादी तौर पर ब्लाक स्तर पर प्रदेश के भी ब्लाक मुख्यालयों में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल के लिए दो—दो स्कूलों का चयन किया गया। स्कूल शुरू भी हुए। और परिणाम सिफर। जानकारी के मुताबिक प्रदेश के 146 ब्लाक मुख्यालयों में 292 स्कूलों का संचालन किया गया। इसका परिणाम भी जांचा जाना चाहिए था।

इसके पीछे सोच रही कि यदि शिक्षा के अधिकार के तहत बच्चा अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में भर्ती होकर पढ़ाई तो कर लेगा। पर भविष्य में उसके लिए अंग्रेजी शिक्षा के द्वार बंद हो सकते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए शासन ने कोशिश की थी। इन स्कूलों में शुरूआती दिनों में बड़ी संख्या में लोगों ने अपने बच्चों की भर्ती करवाई फिर जल्द ही निकलवा भी लिया। कारण स्पष्ट था कि अंग्रेजी माध्यम के इन स्कूलों में स्टैंडर्ड का नितांत अभाव रहा।

फिलहाल तीसरे चरण में शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डा. आलोक शुक्ला के मार्ग दर्शन में बड़ी शुरूआत की तैयारी की जा रही है। हाल ही में कैबिनेट ने योजना का अनुमोदन कर दिया है। बताया जा रहा है कि बच्चों की अंग्रेजी शिक्षा से जुड़ी इस व्यवस्था में मिनरल फंड और डीएमएफ की राशि का उपयोग करने की तैयारी चल रही है।

स्कूल शिक्षा विभाग में एनजीओ के सूत्रधार अभी भी समग्र शिक्षा में दायित्व संभाल रहे हैं। सवाल यह है कि शिक्षा को लेकर जिस तरह से अफसरों के रहते प्रयोग होते हैं और योजना के सफल होने से पहले ही अथवा विफल होने की घोषणा किए बगैर ही दूसरी योजना की लांचिंग कर दी जाती है। इससे समय और श्रम जाया तो होता ही है। साथ ही कुछ नई कहानियां जुड़ जाती हैं… जिसे सुनना सरकार को नागवार गुजरता है।

लॉक डाउन 4.0

केंद्र सरकार ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सुझावों को काफी गंभीरता से लिया है। लॉक डाउन 4.0 की घोषणा के बाद पहली गाइड—लाइन इस बात का खुलासा कर रही है। मसलन भूपेश बघेल की सबसे बड़ी मांग राज्य के भीतर रेड, आरेंज और ग्रीन जोन को लेकर निर्धारण का अधिकार राज्य को देने की मांग थी। जिसे दे दिया गया है। पर 3.0 के खत्म होते—होते राज्य के कुछ नए जिलों से बुरी खबर आई है। अब फिर से 29 संक्रमितों की संख्या राहत की उम्मीदों पर पानी फेरती दिख रही है।

प्रवासी मजदूरों की दास्तां…

बीते सप्ताह भर प्रवासी मजदूरों की बेबसी की हकीकत ने प्रदेश को रूआंसा कर दिया। राजनांदगांव से लेकर कोरिया तक… बीजापुर से लेकर सरगुजा तक चारों ओर से बेबस मजदूरों की मजबूरी की दास्तान गूंजती रही। टाटीबंध में ट्रक पर सवार मजदूरों की तस्वीरों ने आम जनमानस को दुखी कर दिया है। हांलाकि राज्य सरकार के इंतजाम काफी बड़े हैं। हर तैयारी कम पड़ रही है उपर से प्रवासी मजदूरों के संक्रमण की रिपोर्ट भी सरकार को चेता रही है।

राजधानी के महापौर

छत्तीसगढ़ की राजधानी के महापौर एजाज ढेबर ने अपना किला सुरक्षित कर लिया है। सात निर्दलीय पार्षदों के कांग्रेस प्रवेश के बाद उनका कार्यकाल स्थिर हो जाएगा। चर्चा है कि इन दिनों महापौर की सरकार के साथ केमिस्ट्री बढ़िया है। लॉक डाउन के दौरान भी कंधे से कंधा मिलाकर काम किया…। 

नेता—अफसर, खींच—तान

सरकार भले ही लाख कहे कि सत्ता और संगठन के खाने में सब कुछ ठीक—ठाक चल रहा है। पर राज्य के जिलों में दृश्य कुछ अलग कहानी बयां कर रहे हैं। जिलों में काम के प्यासे कांग्रेसी मुंह ताककर बैठे हैं। सुनने में आया है कि मनरेगा से मजदूर और कार्यकर्ता दोनों के बीच समन्वय बिठाने की कोशिश हो रही है। इसके इतर पंचायतों में थोड़ा बहुत जो काम आ भी रहा है उसमें अफसर उपर से ही खेल रहे हैं। नतीजा साफ है अफसर और नेताओं के बीच टकराहट बढ़ रही है। बीजापुर के बाद दंतेवाड़ा में भी कुछ आवाजें निकली हैं। हो सकता है सरकार तक पहुंच भी गई हों…

और अंत में…
राज्य सरकार के जिन अफसरों का ठिकाना देश की राजधानी में हैं। उनके आवागमन में क्या क्वेरंटीन अवधि का पालन होता होगा? यह सवाल… जस्ट फार नॉलेज है। सुना है, एक बड़े अफसर दिल्ली गए हैं…

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