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लॉक डाउन : छोटे छोटे वेंडर फसे मुश्किल में…

भंवर बोथरा. जगदलपुर।

लॉक डाउन 3 सामान्य कारोबारियों के लिए कुछ राहत लेकर आया लेकिन छोटे छोटे खोमचेवाले, ढ़ेले और छोटे डब्बे लेकर खाने पीने के सामान के साथ कारोबार करके अपना जीवन यापन करने वाले वेंडरों के लिए कोरोना वायरस अभी भी मुसीबत बना हुआ है भले ही सम्पूर्ण बस्तर ग्रीन जोन में ही क्यों न हो।

शासन – प्रशासन के जारी निर्देशों में इनका कोई ध्यान नहीं रखा गया है। प्रातः 9 से अपरान्ह 4 बजे तक ही कारोबार करने के निर्देशों में इन्हें कोई राहत नहीं है। इनका सबसे बड़ा कारोबार शाम से देर रात तक ही ज्यादा चलता है, थोड़ा बहुत नाश्ते का कारोबार भी कुछ ठेलों और ढ़ाबे नुमा डब्बों पर चलता था वो भी प्रभावित हुआ है।

कुछ युवा वेंडर अब ऑनलाइन और मोबाइल के सहारे घर से कारोबार जरूर कर रहे हैं पर कोरोना के डर ने उस पर भी लगाम ही लगी हुई है।कुल मिलाकर इनका व्यवसाय 25% तक सिमट गया है जिसके चलते इनकी भी हालत मांगने वालों जैसी बन गई है।

बस्तर चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज का भी ध्यान नहीं

उधर व्यापारियों की महत्वपूर्ण संस्था बचेकाई भी इनकी समस्याओं और सहयोग की तरफ ध्यान नहीं दे सकी है, जबकि सामाजिक सरोकार में हमेशा उसने अग्रणीय भूमिका ये संस्था निभाते आ रही है और वर्तमान में भी वो लगातार सेवा में अपनी उपस्थिति दे रही है, छोटे वेंडरों पर उसका ध्यान नहीं जाने से असंगठित इन वेंडरों की मांग शासन प्रशासन तक नहीं पहुच सकी है जिसके चलते वो इनकी अनदेखी ही करता दिखाई दे रहा है।

न स्थाई जगह और न स्थाई कारोबार

अपने बलबूते पर स्वरोजगार के माध्यम से मेहनत करनेवाले इन वेंडरों के लिए कोई स्थायी जगह नहीं है जहाँ वे निश्चित होकर व्यवसाय कर सके और न ही आज की स्थिति में कारोबार का स्थायित्व नजर आ रहा है ऐसे में लगभग 800 के करीब जगदलपुर में और पूरे संभाग में देखें तो लगभग 2000 के करीब इन वेंडरों के परिवार पर रोजी रोटी का संकट आ गया है, समय अब भी है कि इनकी तरफ भी ध्यान दिया जाए।

कारोबारी दुविधा में

इन छोटे कारोबारियों से जब बात की गई तो इनकी हताशा इनके चेहरे से साफ झलक रही थी, चर्चा में वीरू राठौर ने बताया कि 9 बजे जब कारोबार करने आते हैं तो साफ सफाई और तैयारी में ही 1 घंटा निकल जाता है जब तक नाश्ते का समय भी जा चुका होता है, गर्मी के इस मौसम में दोपहर में यदा कदा ही ग्राहक आते हैं, बाहरी आगमन भी रुका है ऐसे में धंधा पूरी तरह से खत्म हो गया है।फूलों के व्यापार में लगे हेमंत साहू ने भी कहा कि फूलों के व्यापार में भी काफी परिवार लगे हैं उनकी भी हालत इनके जैसी ही है।

देखना है कि 17 मई के बाद क्या स्थिति होती है, अगर यही स्थिति रही तो इनके लिए मुसीबतो का पहाड़ टूट पड़ेगा इसकी आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।

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