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कटघोरा ने सीएम भूपेश को किया बैकफुट पर… नहीं तो…

सुरेश महापात्र / दबी जुबां से…

बीते 21 मार्च से छत्तीसगढ़ में बंद जैसे हालात हैं। यह सब प्रधानमंत्री द्वारा जनता कर्फ्यू से एक दिन पहले किया गया। ऐसा करके भूपेश बघेल ने राज्य में एक संदेश देने की कोशिश की कि वे कोरोना संक्रमण से राज्य को बाहर निकाल ले जाएंगे। प्रदेश में यदि कोरबा को छोड़ दें तो करीब—करीब यह रणनीति फलीभूत होती दिखी भी। पर जमाती कनेक्शन के बाद कोरबा जिले के कटघोरा में जिस तरह से तेजी से हालात बदले सरकार को रवैया सहमा सहमा से हो गया है।

यदि आप देखेंगे कि छत्तीसगढ़ में जब तक कुल 9 पाजिटिव केस मिले थे और उनसे जुड़े सभी इलाकों को सरकार ने तत्परता के साथ सील कर दिया। उसके बाद एक—दो दिन प्रदेश को आशावान बनाते रहे। पर जैसे ही कटघोरा का पहला खाता खुला थोड़ी असहजता शुरू हुई। 8 अप्रेल को कटघोरा में कामटी महाराष्ट्र के नाबालिक के संक्रमण का पहला केस सामने आया। इसे क्वेंरटाइन नहीं किया गया था। इसके साथ जमाती संपर्क के सबूत मिलने से सरकार के हाथ—पांव फूले। इसी दिन राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने करीब—करीब इशारा कर दिया कि लॉक डाउन फिलहाल खोलना संभव नहीं है। पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कोशिशे बता रही थीं कि वे 14 अप्रेल के बाद राज्य को लॉक डाउन से बाहर निकालकर खड़ा कर देंगे। हांलाकि ऐसा विचार करना कोई बुरी बात नहीं है पर जब ऐसे विचार में गहरी राजनीति का प्रभाव हो तो निश्चित तौर पर सचेत रहना चाहिए।

इस दौरान जब भूपेश बघेल ने राष्ट्रीय मीडिया से बात किया तो उस दौरान भी ईशारा किया कि वे 12 को लॉक डाउन को लेकर अंतिम फैसला ले लेंगे पर यह सधी हुई वाणी थी जिसमें जबरदस्त उत्साह था स्वयं को सफल साबित करने का और कोरोना से ग्रसित राज्यों में सबसे पहले स्वयं को खड़ा दिखाने का। उन्होंने कहा था 11 अप्रेल को प्रधानमंत्री जब मुख्यमंत्रियों से चर्चा करेंगे उसके बाद 12 अप्रेल को राज्य की कैबिनेट में इस मसले पर अंतिम फैसला ले लिया जाएगा। हांलाकि हुआ ऐसा ही पर जैसा सीएम सोच कर चल रहे थे वैसा ना होकर थोड़ा सहमा हुआ सा…

11 अप्रेल को प्रधानमंत्री से चर्चा से पहले ही कटघोरा में 7 अन्य पाजिटिव संक्रमण के मामले सामने आ गए। सो पीएम से बैठक के दौरान राज्य के दो वरिष्ठ मंत्री टीएस सिंहदेव और ताम्रध्वज साहू भी शामिल रहे। ऐसा भूपेश ने क्यों किया? यह अब आप सोचते रहिए… क्योंकि वे यह जान रहे हैं कि कोरोना को इटली और अमेरिका की तरह हल्के में लेना खतरनाक हो सकता है… जनता की सेहत के लिए और उनकी राजनीति के लिए भी…

फिलहाल संभलकर चलने का वक्त…

प्रदेश की आबादी और क्वेंरनटाइन किए गए लोगों के अनुपात में राज्य में अब तक सैंपल टेस्टिंग की स्थिति कतई संतोषजनक नहीं है। प्रदेश की आबादी करीब सवा दो करोड़ है। यहां 76945 लोगों को क्वेंरनटाइन कर रखा गया है। जिनमें विदेश से लौटने वाले और तबलिगी जमात के संपर्क में आने वाले लोग शामिल हैं। इनमें से अब तक राज्य की मेडिकल बुलेटिन बताती है कि करीब 4 हजार लोगों के सैंपल की जांच ही हो पाई है। 52 की जांच चल रही है। यानी संभलकर चलना होगा।

टेंडर नहीं आस टूटी…

राज्य में भले ही अभी तक अकेले कटघोरा में ही संक्रमण के हालात दिख रहे हैं और शेष इलाकों में संशय कायम है। वजह है राज्य में कोरोना जांच की प्रक्रिया। सरकार ने कोरोना से निपटने के लिए रैपिड सैंपल किट के लिए टेंडर किया था जिसमें संबंधित फर्म द्वारा अनुपलब्धता बता दिए जाने से मामला खटाई में पड़ गया है। इसके लिए संभवत: नए सिरे से टेंडर किया जाएगा।

आदिवासियों का लॉक डाउन

बस्तर के आदिवासी अंचल में प्रकृति के सहारे जीने वाले लोगों में कोरोना के संक्रमण को लेकर शहरों की अपेक्षा ज्यादा जागृति दिखाई दे रही है। बस्तर के विभिन्न जिलों से आदिवासी मजदूर तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में काम के लिए जाते हैं। कोरोना लॉकडाउन के बाद बहुत से इलाकों में पैदल चलकर वापस लौट आए… पर आने के बाद गांवों में जिस तरह से उन्हें क्वेंरनटाइन किया गया यह अनुकरणीय है। बस्तर में बहुधा इलाकों से खबरे आ रही हैं कि गांवों में संक्रमण से फैलने से रोकने के लिए गांव के बाहर ही नाका लगा दिया गया है। बाहर से आने वाले ग्रामीणों के लिए शरण स्थली बना दी गई है। वहीं स्वास्थ्य विभाग की टीम जाकर स्वास्थ्य संबंधित दिशा निर्देश भी दे रही है।

एक प्रश्न?

छत्तीसगढ़ सरकार ने शिक्षा तुंहर द्वार नामक आन लाइन शिक्षा की व्यवस्था कक्षा पहली से कक्षा 10 वीं तक की है। इसे कक्षा 11 वीं और 12 वीं के लिए भी लागू करने का काम चल रहा है। यह निश्चित तौर पर अच्छी पहल है। पर सवाल यह है कि जिस प्रदेश में 80 प्रतिशत बच्चे सरकार की सहायता के बगैर अपनी पढ़ाई नहीं कर सकते वे स्मार्टफोन में एप डाउनलोड कर सवाल—जवाब कर सकेंगे? कहीं ऐसा तो नहीं कि ड्राप आउट के गंभीर आंकड़ों को छिपाने के लिए जो खेल पूर्ववर्ती सरकार ने खेलना शुरू किया था जिसमें बच्चों के पास—फेल का अंतर ही खत्म कर दिया। उसी तरह से स्मार्ट शिक्षा के बहाने सरकार के मुखिया को अंधेरे में रखने की कोशिश तो नहीं है। भगवान ना करे ऐसा हो…। मुझे तो लगता है शिक्षा विभाग ने छत्तीसगढ़ बनने के बाद केवल ऐसी योजनाएं ही बनाई जिससे सिस्टम के लिए पैसा जनरेट होता रहे…।

और अंत में…
कोरोना के बहाने प्रदेश में जिस तरह का राजनीतिक द्वंद चल रहा है वह आने वाले तूफान का संकेत तो नहीं…

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