मी लार्ड आप कभी गलत हो ही नहीं सकते…
- सुरेश महापात्र / आज—कल.
पूर्व मुख्य न्यायधीश जस्टिस रंजन गोगोई राज्य सभा के लिए नामित किए गए हैं। यह बिल्कुल वैसा ही फैसला है जैसा पहले भी हो चुका है तब जस्टिस रंगनाथ मिश्रा इससे पहले ऐसे चीफ जस्टिस हुए जो राज्यसभा के सदस्य बने थे। वे कांग्रेस की टिकट पर सीधे चुनकर 1998 में राज्यसभा गए थे। यदि वह तब सही था तो फिर अब यह विवादित कैसे हो सकता है?
हांलाकि रंगनाथ मिश्रा को राज्य सभा भेजे जाने का फ़ैसला विवादित मानते इसे राजनीतिक फ़ायदा उठाने के तौर पर देखा गया था। तब 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए नरसंहार में बड़े कांग्रेसी नेताओं को बचाने के ईनाम के तौर पर इसे देखा गया। रंगनाथ मिश्रा ने दंगे की जांच के लिए बनाई गई जस्टिस आयोग का नेतृत्व किया था।
बीजेपी 2014 में सत्ता में आने से पहले यह मानती थी कि जजों को अपने पक्ष में फैसला देने के बाद पुरस्कृत किया जाता रहा है यह गलत परंपरा है। अब के केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने 2013 में ट्वीट किया था, “जजों को रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले फायदे को ध्यान में रखते हुए बहुत कुछ किया जा रहा है. रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले फायदे न्यायिक फ़ैसलों को प्रभावित करते हैं.”
यदि अब भारतीय जनता पार्टी की सरकार पूर्व जस्टिस रंजन गोगोई को राज्य सभा के लिए मनोनित कर रही है तो इतिहास को पढ़ते हुए आगे बढ़ना चाहिए। सरकार के इस फैसले से रंजन गोगोई को भाजपा के पक्ष में फैसला लेने वाला तमगा मिल जाएगा। इससे उनकी छवि पर उतना ही बुरा असर होगा जितना रंगनाथ मिश्रा को हुआ था।
सरकार के प्रस्ताव पर सहमति देकर निश्चित तौर पर श्री गोगोई ने बहुत सोचा होगा बिल्कुल वैसा ही जैसा उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में बैठक फैसला करते समय तथ्य और कथ्य के मध्य से सत्य को परखने में किया होगा।
हिंदुस्तान में न्यायपालिका का सम्मान उसकी निष्पक्षता के कारण है। निष्पक्षता के भाव को बनाए रखने के लिए ही न्यायधीश की नियुक्ति से लेकर ज्यूडिसरी सिस्टम में पूरी तरह पृथक संविधानिक व्यवस्था है।
सिर्फ संविधान की इस व्यवस्था के चलते यह सदैव स्वीकार्य है कि मी लार्ड आप गलत नहीं हो सकते… ना आप पहले गलत थे जब रंगनाथ मिश्रा के तौर पर राज्यसभा की सीट हासिल की थी और ना ही अब जब रंजन गोगोई के तौर पर आप राज्य सभा में बैठेंगे…