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BIG BREAKING : पाठ्य पुस्तक निगम में छपाई के खेल पर महाप्रबंधक का संगीन आरोप पत्र… यानी गफलत में बड़े—बड़े नाम शामिल…

  • इम्पेक्ट न्यूज. रायपुर।

छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तकनिगम के महाप्रबंधक अशोक चतुर्वेदी ने स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर निगम में सन् 2005—2006 से लेकर अब तक कई बड़ी अनियमितताओं की शिकायत दर्ज कराते जांच और कार्रवाई की मांग की है। प्रमुख सचिव को यह पत्र बीते 13 दिसंबर को श्री चतुर्वेदी ने प्रेषित किया है।

इस पत्र की एक प्रति सीजी इम्पेक्ट को प्राप्त हुई है जिसका मजमून इस तथ्य को साबित कर रहा है कि छत्तीसगढ़ में पाठ्य पुस्तक निगम की आड़ में नेता, अफसर और मुद्रक का एक बड़ा सिंडिकेट क्रियाशील रहा है और वह करोड़ों की गड़बड़ी को साल दर साल अंजाम देता रहा।

श्री चतुर्वेदी ने अपने पत्र के पहले पैरा में ही स्पष्ट लिखा है कि ‘जांच के संबंध में अपने अनुरोध से पहले मैंने अनेकानेक तथ्यों, बिंदुओं, विषयों, भूत, वर्तमान एवं भविष्य के संबंध में गहन चिंतन करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि स्वयं मेरे द्वारा छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम के संपूर्ण विषयों के जांच की मांग करनी चाहिए।’

देखें पत्र का मजमून

उन्होंने आगे लिखा है कि ‘मेरे अंर्तमन ने महसूस किया कि यदि मैं ऐसा नहीं करता हूं तो मैं स्वयं को अपराधी मानने के लिए बाध्य हो जाउंगा। चूंकि मेरे संज्ञान में शिक्षा सत्र 2016—17 से आज पर्यंत व्यक्तिगत रूप से कोई भी निर्णय नियमों के विपरीत नहीं किया गया है और वैसे भी छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम के अंतर्गत निगम का बॉयलाज स्वयं कहता है कि कागज, मुद्रण, परिवहन, पॉजीटिव्ह, विविध मुद्रण सभी प्रकार के निविदाओं पर अंतिम निर्णय लेने का अधिकार छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम के कार्यकारिणी को है एवं प्रबंध संचालक एवं महाप्रबंधक कार्य संपादित करने हेतु प्राधिकृत अधिकारी हैं।’

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इस दूसरे पैरा से पूरा मामला स्पष्ट होता दिख रहा है कि पाठ्य पुस्तक निगम में प्रदेश के गरीब बच्चों को नि:शुल्क पुस्तक देने की आड़ में शासन की अफसरशाही और ठेकेदार के साथ नेताओं का गठजोड़ धनाशोधन का काम खुले तौर पर करता रहा।

श्री चतुर्वेदी अपने पत्र में लिखते हैं कि ‘मेरे द्वारा पाठ्य पुस्तक निगम के दस्तावेजों की जांच की मांग करना यद्यपि एक दु:साहस भरा कदम है क्योंकि मानवीय त्रूटियों से भी इंकार नहीं किया जा सकता। तथापि निगम के पूर्व अनुभव बहुत ही डरावने और भयंकर हैं। जिनसे अधोहस्ताक्षरकर्ता के कार्यकाल की तुलना करने पर सारे तथ्य स्वमेव सामने आ जाएंगे।’

महाप्रबंधक ने स्पष्ट तौर पर निविदा प्रक्रिया, दरों एवं पेपर क्रय संबंधी समस्त दस्तावेजों की जांच की मांग उठाई है। जिसके तहत कहा है कि पाठ्य पुस्तक निगम के प्रारंभ से अभी तक के सभी निविदाओं की जांच की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए 2010—11, 2011—12, एवं 2012—13 के पेपर की खरीदी की प्रक्रिया में महालेखाकार द्वारा अनेकानेक आपत्तियां दर्ज कराई गईं। जिसकी कंडिकाएं आज भी विलोपित नहीं हो सकीं हैं। इसी पेपर खरीदी की प्रक्रिया में तत्कालीन प्रबंध संचालक के विरुद्ध जांच भी संस्थित हुई थी, जिसकी नस्ती शासन स्तर पर अवलोकित की जा सकती है। उस दौरान नियमों को दरकिनार कर अनेकानेक फैसले लिए गए थे।

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इतना ही नहीं 2014—15 में डीजीएसएंडडी रेट कान्ट्रेक्ट की अवधि समाप्त हो जाने के बाद भी उसी दर पर सीधे एचपीसीएल कंपनी को क्रय आदेश दिया गया। इतना ही नहीं वरन् बिना कागज प्राप्त किए 90 प्रतिशत का अग्रिम भुगतान कर दिया गया। इसके अलावा बीमा और परिवहन की राशि का भुगतान नियम विरूद्ध किया गया जिससे निगम को करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ। इसका उल्लेख महालेखाकार की आडिट रिपोर्ट में देखा जा सकता है।

नौ पन्नों के इस आरोप पत्र की इबारत अक्षर ज्ञान देने के पवित्र काम में होने वाली काली करतूतों का भंडाफोड़ करती दिख रही है। इसमें कई ऐसी बातों का उल्लेख किया गया है जिससे कई सफेदपोश मुद्रकों की छवि पर जबरदस्त बुरा असर भी पड़ेगा साथ ही होने वाले खुलासे प्रिंटिंग के खेल को पूरी तरह से उजागर कर देंगे।

आरोप पत्र के मुताबिक यह सब कुछ एक योजनाबद्ध तरीके से अर्थ उपार्जन के लिए किया जाता रहा। बंद प्रिंटिंग यूनिट के नाम पर करोड़ों का काम जारी किए जाने से लेकर बड़े प्रिंटर्स के द्वारा सरकारी कागज को दबाए जाने का आरोप महाप्रबंधक ने अपने आरोप पत्र से लगाया है।

इस पत्र की प्रति प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री, स्कूल शिक्षा विभाग के मंत्री के निज सचिव, मुख्य सचिव के स्टाफ आफिसर, आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो एवं एंटी करप्शन ब्यूरो को भी भेजी गई है।

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