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रमन्ना बस नाम ही काफी है : एक ऐसा दुर्दांत जिसने 1983 से 2019 तक बस्तर को सैकड़ों घाव दिए…

  • सुरेश महापात्र.

छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती अविभाजित आंध्र प्रदेश में सिद्दीपेट जिले के मद्दुर ब्लॉक के बेक्कल गाँव (अब तेलंगाना में पड़ता है) का रहने वाला रावलू श्रीनिवास उर्फ रमन्ना एक खूंखार नक्सली नेता, जो सीमावर्ती बस्तर की बीहड़ से निकला और लाल साम्राज्य पर अपनी स्वाभाविक मौत तक एक छत्र राज किया। 2019 से पहले पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) के नेता रमन्ना की मौत की तीन बार खबरें उड़ चुकीं थीं। सो पुलिस चौथी दफे इस दुर्दांत नक्सल की मौत की खबर के बाद पुष्टि ने छह राज्यों की सरकार के लिए खतरा कम करने का काम किया है।

करीब 1.50 करोड़ के इनामी नक्सली की लंबी बीमारी के बाद 7 दिसंबर को मौत हो गई। मौत के बाद उसके अंतिम संस्कार की फोटो सामने आई तब कहीं 12 दिसंबर को छत्तीसगढ़ समेत छह राज्यों में वांछित नक्सली रमन्ना की मौत की पुष्टि हो सकी। 25 जून 1989 को जगदलपुर जेल से फरार होने के बाद पुलिस व खुफिया विभाग रमन्ना की तस्वीर तक नहीं ढूंढ सका था।

उसने आंध्र प्रदेश में अपनी पहली पत्नी की मृत्यु के बाद 1994 में सोढ़ी हिड़मे उर्फ सावित्री से शादी की, जो बस्तर के कोंटा क्षेत्र से रहने वाली किस्टारम नक्सली लीडर भी थी। पुलिस का दावा था कि कुछ साल पहले मुठभेड़ में सावित्री की मौत हो गई थी। पर दो दिनों बाद उसकी पत्नी व बेटा बोटेलंका पहुंचे। इनके आने के बाद ही अंतिम संस्कार किया गया। रमन्ना की अंत्येष्टि की तस्वीर में उसकी अर्थी को हथियारबंद महिला नक्सली कंधा देते दिख रही हैं। उसमें सावित्री भी शामिल होने का दावा किया गया है।

बस्तर में नक्सलवाद से माओवाद और गुरिल्ला वार के स्वरूप में परिवर्तन के लिए जिस नक्सल नेता ने पूरी ताकत लगाई, जिसने मिलट्री कमिशन को एक्टिवेट किया। फोर्स पर अपनी रणनीति से अटैक कर भारी नुकसान पहुंचाने के बाद उसकी स्वाभाविक बीमारी से मौत भले ही माओवादी आंदोलन के लिए सबसे बड़ा झटका है पर अब फोर्स को उसके जीते जी बदला ना ले पाने का अफसोस ही रहेगा। गुरिल्ला वार में रमन्ना ने सैकड़ों बार सशस्त्र पुलिस को मात दी और भारी नुकसान पहुंचाया।

छत्तीसगढ़ के खूंखार माओवादी नेता रावुला श्रीनिवास उर्फ कुंटा उर्फ रमन्ना, जो 18 साल की उम्र में भाकपा (माओवादी) में शामिल हुआ। 1983 से 2019 के बीच, रमन्ना ने बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में मौत का तांडव मचाया। उसने बस्तर को गुरिल्लावार जोन में तब्दील कर दिया। सशस्त्र जवानों की हत्या और आर्म्स लूटने के लिए हर बार नई रणनीति के साथ हमले को अंजाम दिया।

चाहे मसला मुरकीनार एसएएफ कैंप पर अटैक का हो या रानीबोदली में नशे में सोते जवानों को जिंदा जलाने का। क्रूरता की हर परिभाषा में अपने संगठन के लिए दहशत और जीत का पर्याय रहा रमन्ना। पांच राज्यों छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और ओडिशा ने रमन्ना को जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर पुरस्कार रखे। बस्तर में बिछाए गए बहुत से बारुदी सुरंग की जानकारी भी रमन्ना के साथ खत्म हो गए होंगे ऐसी संभावनाओं ने राहत भी दी है। माना जा रहा है कि बस्तर में फोर्स के एंबुश के लिए बिछाए गए सैकड़ों बारुदी सुरंगों की जानकारी केवल रमन्ना के पास थी।

छत्तीसगढ़ में माओवादी आंदोलन 1980 के दशक के अंत में शुरू हुआ वह समय जब रमन्ना ने खुद को भद्राचलम, तेलंगाना के बस्तर में स्थानांतरित किया, ताकि दंडकारण्य क्षेत्र में काम किया जा सके। माओवाद विरोधी अभियानों में लगे पुलिस अधिकारी भी मानते हैं कि बस्तर में माओवादियों के लिए रमन्ना सबसे बड़ा रणनीतिकार रहा। वह इस तरह से योजना बनाता था कि उसकी सफलता में संदेह ना रह जाए। एंबुश अटैक के लिए कैडर को उसने ट्रेंड किया। जब तक फोर्स रणनीति को समझ पाती तब तक वे दर्जनों अटैक को सफल कर चुके थे।

इस तरह से रमन्ना ने अपने कैडरों में आत्मविश्वास पैदा किया। जिसके चलते कैडर कई दफे आत्मघाती हमलावर की तरह भी अटैक को सफल करके चले गए। इसका साक्षात उदाहरण बीजापुर जिले में मुरकीनार एसएएफ कैंप पर हमला था जिसमें सशस्त्र माओवादी बस पर सवार होकर दाखिल हुए। बस की छत पर मोर्चा बनाकर गेट तोड़कर कैंप में घुसे जिसमें फोर्स को जबरदस्त नुकसान पहुंचा। तब कोई इस बात की कल्पना नहीं कर सकता था कि माओवादी इस तरह से बस को कब्जे में लेकर अटैक कर सकते हैं।

2003 एनएच पर गीदम थाना पर हमला और हथियारों की लूट, 2004 पोंजेर में लैंड माइन प्रोटेक्टर व्हीकल पर अटैक, 2005 मुरकीनार एसएएफ कैंप पर बस से अटैक, 2006 ताड़मेटला जगरगुंडा थानेदार हेमंत मंडावी के साथ 7 जवानों को एंबुश में फंसाना, 2006 में उर्पलमेटा में 28 सीआरपीएफ जवानों की सर्चिंग पार्टी का एंबुश। 2007 रानीबोदली में एसएएफ कैंप पर अटैक, 2010 ताड़मेटला 76 सीआरपीएफ जवानों का एंबुश। एर्राबोर सलवा जुड़ूम कैंप पर अटैक, 2013 में झीरम घाट पर कांग्रेस के काफिले पर एंबुश अटैक।अप्रैल 2017, सुकमा में बुरकापाल: एक टुकड़ी पर घात 25 सुरक्षाकर्मियों की हत्या ऐसे दर्जनों वारदातों की सूची केवल दक्षिण पश्चिम बस्तर से गिनी जा सकती है।

रमन्ना का उदय भी दिलचस्प है। वह 1980 के दशक के प्रारंभ में आंध्र प्रदेश में माओवादी संगठन पीपुल्स वार ग्रुप (PWG) में शामिल हुआ और बाद में 1980 के दशक के अंत में छत्तीसगढ़ (तब मध्य प्रदेश में बस्तर) के दंडकारण्य क्षेत्र में स्थानांतरित हो गया। माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (MCC) और कुछ छोटे समूहों के साथ PWG के विलय के बाद, वह धीरे-धीरे चरणों में CPI (माओवादी) के नेता के रूप में उभरा। उसकी पहुंच केवल छत्तीसगढ़ तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि रेड कॉरिडोर पर वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) से प्रभावित राज्यों में भी थी।

अपने 36 वर्षों के ऑपरेशन के दौरान, उसने विभिन्न भूमिकाएँ निभाईं। एक दशक पहले, उन्होंने DKSZC की बागडोर संभाली – जो नक्सल गतिविधियों जैसे योजना, सशस्त्र रणनीतिककरण और हमलों को संभालती है। केंद्रीय समिति का सदस्य होने के अलावा – भाकपा (माओवादी) का सर्वोच्च निकाय – रमन्ना मध्य क्षेत्र ब्यूरो का सदस्य और DKSZC का सचिव भी था, जिसे उसने अपनी मृत्यु तक धारण किया।

रमन्ना की मौत और अंत्येष्ठी के बाद ऑडियो क्लिप में पार्टी के आधिकारिक बयान को पढ़ते हुए, विकल्प ने कहा, “भाकपा (माओवादी) ने महान नेता कॉमरेड रमन्ना को समृद्ध श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने गरीबों और दलितों का कारण बनकर राज्य के खिलाफ युद्ध का संचालन किया। माओवादी यह व्यापक आंदोलन कार्यक्रम जारी रखेगा, जो कामरेड रमन्ना ने किया था। ” इस बयान ने पुलिस की बेचैनी भी बढ़ाई है। फिलहाल किसी दूसरे नेता के दंडकारण्य जोनल सेकेट्री के पद पर घोषणा नहीं की गई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि रमन्ना को DKSZC के सचिव के रूप में कौन बदलता है।

बस्तर में नक्सल मामले के रिपोर्टर विकास तिवारी (रानू) बताते हैं कि…

रमन्ना की मौत की खबर के बाद पूर्व में आत्म समर्पित बदरन्ना को दु:ख पहुंचा। जिस दिन से रमन्ना की मौत की खबर बाहर आई उसके बाद बदरन्ना बेचैन हो उठा। उसने इस मामले की सच्चाई जानने के लिए कई दफे रानू तिवारी से संपर्क भी साधने की कोशिश की। बदरन्ना के मुताबिक रमन्ना अपनी दूसरी शादी से पहले संगठन से स्वयं को पृथक कर लिया था।

हुआ यह था कि रमन्ना ने अपने ही संगठन की साथी सोढ़ी हिड़मे के साथ जीवन संगिनी बनाकर काम करना चाहता था। इसके लिए संगठन के नियम बाधा बन गए। वह तेलंगाना वापस चला गया। जहां उसके बड़े भाई और भाभी ने समझाईश दी।ये भी संयुक्त रूप से माओवादी संगठन में सक्रिय रहे। आंध्र प्रदेश में हुए एक मुठभेड़ में दोनों की एक साथ मौत हुई थी।

विवाह के प्रस्ताव पर संगठन ने सशर्त सहमति दी। इसके बाद उसे कार से लाकर कोंटा इलाके में छोड़ा गया। बात यहीं खत्म नहीं हो गई। शादी के बाद भी कड़े अनुशासन का पालन और संगठन छोड़ने के कारण संदेह के घेरे में रमन्ना को कई परीक्षा देने के बाद आज की स्थिति ​प्राप्त हो सकी। बकौल बदरन्ना, रमन्ना उसके गुरू थे। उसकी संगठन में भर्ती भी रमन्ना ने ही करवाई थी। बदरन्ना बासागुड़ा एलजीएस का कमांडर रहा। तर्रेम ब्लास्ट में मुख्य अभियुक्त रहा। यह बस्तर की पहली बड़ी वारदात थी जिसमें बारुदी सुरंग विस्फोट से फोर्स को उड़ाया गया था।

बस्तर में नक्सल मामले के विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार विरेद्र मिश्र ने बताया कि…

रमन्ना बस्तर में पहला माओवादी था जिसने नया एके 47 स्वचालित गन खरीदकर उपयोग में लाया। रमन्ना अपने जीवन पर्यंत उसी हथियार का इस्तेमाल किया। इसके बैरल का रंग भी सफेद हो चुका है।

25 जून 1989 को जगदलपुर जेल से भागने की घटना की विस्तृत जानकारी देते श्री मिश्र ने बताया कि रमन्ना ने जेल से भागने के लिए जेल में बंदियों को दिए गए चादर का इस्तेमाल किया था। चादर को फाड़कर उससे रस्सी बनाकर दीवार फांदने का उपयोग किया। जिस दौरान वह जेल से फरार हुआ उस दौरान पथरागुड़ा इलाका थोड़ा जंगली हुआ करता था। जो जेल के पीछे का हिस्सा है। माना जा रहा है इसी रास्ते से फांदकर आड़ावाल के रास्ते वह नदी के छोर से कुरंदी जंगल की ओर निकल गया।

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