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लेमरू एलीफेंट रिजर्व की घोषणा ऐतिहासिक फैसला

बघेल सरकार ने कोयला भंडारों के खनन से मिलने वाले अरबों रुपए के राजस्व को ठुकरा कर साल के उस जंगल को बचा लिया है, हम दोबारा हासिल नहीं कर सकते थे. और ऐसा करना आज की तारीख में आसान तो बिल्कुल नहीं था.

  • राजेश आर जोशी. (फेसबुक वाल से साभार )

रायगढ़, धरमजयगढ़ और कोरबा के बेशकीमती साल के जंगलों के नीचे दबे अरबों रुपए के कोयले की जगह 2000 वर्ग किलोमीटर में फैले इलाके को हाथियों के अभयारण्य के रूप में घोषित करने का छत्तीसगढ़ का फैसला कई मायनों में ऐतिहासिक है. इस फैसले का इंतजार कई दशकों से हो रहा था पर हर बार लेमरू के जंगल और हाथियों पर कोयले का राजस्व भारी पड़ जाता था. बाधाएं इस बार भी थीं, लेकिन सरकार ने सारे दबावों को दरकिनार कर हाथियों का साथ दिया.

झारखंड और ओडिशा जैसे पड़ोसी राज्यों में लगातार खराब हो रहे जंगलों की वजह से वहां के जंगली हाथी बड़ी संख्या में इस समय छत्तीसगढ़ में पहुंच रहे हैं. इनकी संख्या आज 230 से 240 के बीच है. इनमें से 120 से 130 हाथी छत्तीसगढ़ के स्थाई निवासी हो चुके हैं. कई दशकों बाद अचानक इतने जंगली हाथियों का सामना करना न छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए आसान है, न सरकार के लिए. मानव और जंगली हाथियों के बीच द्वंद्व छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे देश के लिए चिंता का विषय है. पर ठोस पहल अब जाकर हुई.

लेमरू अभयारण्य इसी चिंता का सबसे सटीक और उपयोगी उपाय बनने जा रहा है. लेमरू रिजर्व के साथ सबसे बड़ी खासियत इसका सरगुजा – जशपुर एलीफेंट रिजर्व के जंगलों से जुड़ा होना भी है, जो करीब 1100 वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा बड़ा है. लेमरू और सरगुजा-जशपुर एलीफेंट रिजर्व को मिला लें, तो जंगली हाथियों के लिए करीब 3 हजार वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा जगह आरक्षित हो गई है. यह पूरा इलाका न केवल मध्य और उत्तरी छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे मध्य भारत के लिए ऑक्सीजन का बहुत बड़ा स्रोत बन जाएगा.

लेमरू रिज़र्व की असल पहचान साल के घने जंगल हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इतना खूबसूरत और जिंदा साल का जंगल देश के शायद ही किसी हिस्से में हो. बघेल सरकार ने कोयला भंडारों के खनन से मिलने वाले अरबों रुपए के राजस्व को ठुकरा कर साल के उस जंगल को बचा लिया है, जिसे हम दोबारा हासिल नहीं कर सकते थे. और ऐसा करना आज की तारीख में आसान तो बिल्कुल नहीं था. पिछले 40 सालों में हमने जंगलों को बर्बाद ही किया है.

छत्तीसगढ़ में शायद ही ऐसा कोई उदाहरण हो, जहां पर सरकारी विभाग दावा कर सके कि उन्होंने काटे गए या खराब हो चुके जंगल को वापस जिंदा कर दिया. लेमरू और सरगुजा-जशपुर एलीफेंट रिजर्व की मदद से जंगली हाथियों के एक बड़े हिस्से को जंगलों तक ही समेटे रखने में मदद मिलेगी, क्योंकि यहां हाथियों के लायक खाना, पानी और रहने की जगह पर्याप्त है. अगर जंगली हाथियों को ये तीनों चीजें मिल जाए, तो वह आमतौर पर इंसानी आबादी के पास जाने से बचेंगे.

वन्य प्राणी विशेषज्ञों की मानें तो हाथी की स्टोन स्पीशीज में आता है, वह अपने रहवास वाले इलाके में ना केवल जंगल को सुधारता है, बल्कि वन्य प्राणियों और वनस्पतियों की सैकड़ों प्रजातियों को जिंदा रखने में मदद करता है. पर केवल लेमरू को एलीफेंट रिजर्व घोषित कर देने भर से कुछ नहीं होगा. सरकार को चाहिए कि वह विशेषज्ञों की मदद से जंगल के अंदर हाथियों के आवास के लिए जरूरी सुविधाएं जुटाने की दिशा में तेजी से काम करे. एलीफेंट कॉरिडोर की पहचान कर वहां के जंगल को बचाने की कोशिश हो.

अगर सब कुछ सही चला तो आने वाले 4 से 5 सालों में इसके नतीजे भी दिखने लगेंगे. और अगर हम ऐसा करने में सफल हो पाए, तो देश में हमारा एलीफेंट रिजर्व एक मॉडल बन सकता है. आगे चलकर राज्य को एक बड़े ईको टूरिज्म सेंटर के रूप में भी इसे विकसित करने में मदद मिलेगी, क्योंकि दुनियाभर में जिस रफ्तार से हाथी खत्म हो रहे हैं, उसे देखते हुए लेमरू और सरगुजा-जशपुर एलीफेंट रिजल्ट एशियाई हाथियों के सबसे बड़े टूरिस्ट स्पॉट बन सकते हैं. जहां लोग उनके प्राकृतिक रहवास में जाकर जंगली हाथियों को करीब से देख पाएंगे. मैनपाट का तराई वाला इलाका जंगली हाथियों को देखने के लिए काफी उपयुक्त माना जाता है. इसी तरह के कई और स्थान सरकार तलाश सकती है.

लेखक : दैनिक नवभारत के संपादक हैं। (इनके फेसबुक वाल से यह सामग्री साभार ली गई है।)

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