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दंतेवाड़ा उपचुनाव : भाजपा के सामने ओजस्वी के प्रति संवेदना पाने और कांग्रेस के सामने परिवार और पार्टी के कर्म का प्रतिफल पाने की चुनौती…

भाजपा से ओजस्वी और कांग्रेस से देवती ही होंगे आमने—सामने…

  • सुरेश महापात्र.

बस्तर संभाग की 12 में से केवल एक सीट दंतेवाड़ा से ही भारतीय जनता पार्टी के विधायक भीमा मंडावी को विधानसभा चुनाव में जीत हासिल हुई थी। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान नक्सली हमले में जान गंवाने के बाद यह सीट रिक्त हो गई थी। इसमें उप चुनाव की घोषणा हो चुकी है और आज अधिसूचना भी जारी हो गई है।

इस चुनाव में भले ही किसी भी प्रकार के कयास लगाए जाएं पर अंत में चुनाव मैदान में भाजपा से स्व. भीमा मंडावी की पत्नी ओजस्वी और कांग्रेस से स्व. महेंद्र कर्मा की पत्नी देवती कर्मा के बीच ही सीधा मुकाबला होना तय है।

कांग्रेस के लिए यह सीट ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। बीते चुनाव में विधायक देवती कर्मा को भाजपा के भीमा मंडावी ने परास्त किया था। तब की परिस्थिति और आज की स्थिति में काफी अंतर है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और राज्य में सरकार बनने के बाद कर्मा परिवार को कांग्रेस ने पूरी तरजीह दी है। प्रशासन में कर्मा परिवार का सीधा दखल है। उनकी मर्जी से अधिकारी रखे और बदले गए हैं।

ऐसे में यह साफ है कि कांग्रेस दंतेवाड़ा में अपनी ताकत दिखाने के लिए कोई कसर शायद ही छोड़े। अब सवाल है कि विधान सभा चुनाव के दौरान कर्मा परिवार में टिकट को लेकर मचे घमासान के बीच छविंद्र कर्मा ने जो तेवर दिखाए थे उसका भी काफी हद तक प्रभाव चुनाव के दौरान पड़ा था।

इस बार उप चुनाव से पहले ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने देवती, दीपक और छविंद्र को एक साथ बिठाकर साफ—साफ पूछा कि आप तय कर लें कि टिकट किसे दें? इसके बाद स्थिति साफ ना होने की स्थिति में मरकाम ने सीएम भूपेश के सामने तीनों को एक साथ बिठा दिया। बताते हैं कि इस बैठक में दीपक ने साफ तौर पर कहा कि वे दंतेवाड़ा में चुनाव किसे लड़ना है यह अपनी मां और भाई छविंद्र के लिए छोड़ रहे हैं। दीपक ने टिकट की दौड़ से खुद को बाहर कर लिया।

बताया जा रहा है कि छविंद्र और देवती कर्मा ने यह संगठन और सीएम भूपेश पर छोड़ दिया कि टिकट किसे दें? कुल मिलाकर संगठन स्तर पर पहले ही परिवार के बीच में सामंजस्य बिठाया जा चुका है। ऐसे में यह तय है कि संगठन और सीएम भूपेश पूर्व विधायक देवती कर्मा को ही एक और मौका देना पसंद कर सकते हैं।

इस बीच दंतेवाड़ा में कांग्रेस के उम्मीदवारों के लिए दो नए नाम सामने आए हैं जिसमें से एक पूर्व सेल्सटैक्स अधिकारी सोनाराम सोरी और दूसरा नाम राजकुमार तामो का है। राजकुमार तामो कोंटा विधायक और मंत्री कवासी लखमा के काफी करीबी हैं। यानी ​सीधे तौर पर कवासी लखमा ने दंतेवाड़ा में अपना दखल दिया है। यह भी संभव है कि कर्मा परिवार को राजनीति का पाठ पढ़ाने के लिए दो नए चेहरों को सामने लाने की कोशिश की गई है।

राजनीतिक तौर पर इसे समझने की जरूरत कर्मा परिवार को है कि कल तक जिस परिवार के सामने कोई दूसरा प्रत्याशी बनने के लिए तैयार नहीं था अब उसे बाहर से भी चुनौती मिल रही है। कर्मा परिवार के लिए शायद इसी संदेश को देने की कोशिश सत्ता और संगठन के इशारे पर की गई है।

कई कांग्रेसियों ने स्पष्ट तौर पर बताया कि नए अध्यक्ष मोहन मरकाम ने उनसे जरूर पूछा था कि अगर कोई दूसरा नाम भी दंतेवाड़ा के लिए सामने आता है तो उस पर भी विचार किया जाएगा। इसके बाद ही ये नाम सामने आएं हैं। महेंद्र कर्मा की कर्मभूमि में कर्मा परिवार का अंतरकलह जगजाहिर है।

इसके चलते बार—बार संगठन और सत्ता के बीच कश्मकस की स्थिति निर्मित होती रही है। सीएम बनने के बाद पहली बार फरसपाल पहुंचे भूपेश बघेल ने पूरे कर्मा परिवार को एक साथ बिठाकर स्पष्ट सलाह दी थी कि किसे क्या करना है? इसके बावजूद कर्मा परिवार में सत्ता में दखल को लेकर मनमुटाव का दौर सामने आया।

यह सब कुछ तब हुआ जब दंतेवाड़ा में विधायक भीमा मंडावी जीवित थे। इसके बाद सभी सरकार कार्यक्रम में पूर्व विधायक देवती कर्मा को प्रशासन ने महत्व दिया। जिला प्रशासन को स्पष्ट कर दिया गया कि श्रीमती कर्मा ही यहां सब कुछ हैं। इसके बाद जिले में जो फेरबदल भी हुए उसमें उनकी सीधी भूमिका रही।

यहां तक की राजनीतिक तौर पर दंतेवाड़ा इलाके में लिए जाने वाले सारे फैसले भी देवती की इच्छा पर ही किए गए। इससे काफी असंतोष भी बढ़ा है। छविंद्र की नाराजगी अपनी मां से ज्यादा बहन से है जिस पर वे राजनीतिक दखल का मसला परिवार की भीतर उठाते रहे हैं।

इधर भारतीय जनता पार्टी ने पहले ही यह तय कर लिया है कि दंतेवाड़ा में शहीद भीमा मंडावी की पत्नी ओजस्वी को ही मैदान पर उतारा जाएगा। इसलिए उपचुनाव के लिए किसी भी दूसरे प्रत्याशी ने अपने नाम को सामने नहीं किया है।

लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा विधायक भीमा के शहीद होने के बाद इस उप चुनाव में देवती के सामने चुनौती पहले से बड़ी होगी। क्योंकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार काबिज है और लोगों को उनके काम के आधार पर वोट देने के साथ—साथ भाजपा के शहीद विधायक भीमा मंडावी के प्रति संवेदना का प्रदर्शन भी करना होगा। एक प्रकार से दंतेवाड़ा में अब नक्सल हमले में दो शहीद विधवा भाजपा और कांग्रेस से आमने—सामने होंगी और जनता को फैसला करना है कि वे संवेदना के साथ हैं या कर्मा परिवार व कांग्रेस के कर्म के साथ…

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