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बम-बारूद के बीच उभरकर आई ऐसी तस्वीर “सुरक्षा और सरकार” यहाँ पुलिस ही माईबाप…

पी रंजन दास. बीजापुर।

आमतौर पर बस्तर में तैनात पुलिस या अर्द्धसैन्य बल पर आदिवासियों पर प्रताड़ना, फर्जी एंकाउंटर, मानवाधिकार के हनन जैसे संगीन आरोप लगते रहे हैं, लेकिन तमाम आरोप-प्रत्यारोप के बीच बस्तर के एक सुदूर इलाके से ऐसी तस्वीर भी उभरकर आई है, जिसे देखकर शायद आरोप-प्रत्यारोपों पर विराम लग जाए। यहां पुलिस का एक ऐसा मानवीय चेहरा नजर आता है, जिससे खाकी वर्दी के प्रति किसी का सीना भी फक्र से और भी चौड़ा हो जाए।

प्रभावित करने वाली पुलिस की यह कार्यशैली नजर आती है बीजापुर जिला मुख्यालय से लगभग 45 किमी दूर बेदरे थाने में पहुंचकर, और यह थाना स्थित है छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र को विभाजित करती इंद्रावती के तट पर, जिसके एक तट पर अबूझमाड़ की सरहद भी लगती है, जो नारायणपुर जिले के ओरछा ब्लाक में आता है और जिसे माओवादियों का सबसे सेफ जोन भी माना जाता है। दरअसल यहां पुलिस की तारीफ किसी सामाजिक सरोकारिता से जुड़े कार्यक्रम या उसके नरम रवैया की वजह से नहीं हो रही, बल्कि यहां पुलिस दर्जनों गांवों के लिए उनकी करता-धरता, या यूं कहे सुरक्षा के साथ-साथ खुद ही माईबाप है।

जिसकी बानगी देखनी हो तो थाने पहुंचकर ग्रामीणों की तरफ से समस्याओं से संबंधित आवेदनों की फेहरिस्त को देखकर इसे समझा जा सकता है। दरअसल यह समूचा क्षेत्र अतिसंवेदनशील माना जाता है। थाने से महज कुछ दूर इंद्रावती नदी बहती है और नदी पार नारायणपुर जिले के अंतर्गत ओरछा ब्लाक के सीमावर्ती गांव तट के समीप बसे हुए हैं, ठीक इसी तरह पड़ोसी राज्य महाराष्ट के सीमावर्ती गांव भी तट के समीपस्थ बसे हुए हैं।

चूंकि नदी पार के दुर्गम इलाकों में बसे गांवों वो चाहे नारायणपुर जिले में आते हो या सीमांत राज्य महाराष्ट्र में, रोजमर्रा की जरूरतें बीजापुर जिले के इस छोर पर आकर ही पूरी हो पाती है। नदी पारा अबूझमाड़ का सरहदी गांव लंका ग्राम पंचायत पड़ता है, इसके अंतर्गत भरमा, पदमेट्टा, रासमेट्टा, कारगुल, पदगुण्डा सहित महाराष्ट का भामरागढ़ गांव भी आता है। सीमांत गांवों तक जिले प्रशासक की पहुंच ना के बराबर है।

माओवादियों की तगड़ी दखल के चलते गांवों में हालात इस तरह के हैं, ऐसे में जहां प्रषासन का कोई भी नुमाइंदा गांवों वालों की सुध लेने नहीं पहुंचता, वहीं रोड तथा संचार सेवा से अछूते इलाके के रहवासियों के लिए अपनी समस्याएं बताने, मांगें रखने का एकमात्र जरिया बेदरे स्थित थाना ही है, चूंकि उक्त गांव, पड़ोसी जिले, राज्य के दायरे में होने के बावजूद पुलिसिंग के तहत् बेदरे थाना क्षेत्र में आते हैं। माओवाद की दखल और सरकार-प्रशासन की पहुंच ना के बराबर होने के चलते ग्रामीण पूरी तरह बेदरे पुलिस पर ही निर्भर है।

थाने में जमा दर्जनों आवेदन इसके प्रमाण भी है। हालही में नदी पार लंका ग्राम पंचायत की तरफ से बेदरे थाने को ग्रामीणों की तरफ से एक ज्ञापन सौंपा गया था। जिसमें नदी पार बसे गांवों की समस्याओं से अवगत कराया गया था। ग्रामीणों की मांग थी कि इंद्रावती नदी पर पुल निर्माण की दिशा में कार्ययोजना बनाई जाए, चूंकि बारिश के दिनों में जब नदी उफान पर होती है तो दर्जनों गांव के हालात टापू जैसे बन जाते हैं, जिला मुख्यालय से कनेक्टिविटी के अभाव में पंचायतों के राशन दुकान भी बेदरे में संचालित है, इसी तरह गांवों में संचालित स्कूल, आश्रमों में शिक्षक पर्याप्त नहीं हैं, हैण्डपंप मरम्मत के अभाव में महीनों से बिगड़े पड़े हैं, जिससे ग्रामीणों को पेयजल संकट का सामना करना पड़ रहा है, लोगों विवशता में नदी का पानी पीने मजबूर हैं।

थाना बेदरे को लंका ग्राम पंचायत के अलावा अन्य गांवों की तरफ से समस्या जाहिर करते ऐसे आवेदन आए दिन मिलते हैं, हालांकि ग्रामीणों की परेषानी को ध्यान में रखते हुए यहां पुलिस अब प्रशासन और ग्रामीणों के बीच संवाद की महत्वपूर्ण कड़ी बन चुकी है। बेदरे थाना प्रभारी अमोल खलकों की मानें तो नदी पार अबूझमाड़ के गांव समेत आस-पास के कई ग्रामीण अपनी समस्या और आवेदन लेकर थाने आते हैं, जिसे उनके द्वारा संबंधित विभाग या जिला प्रषासन को भेज दिया जाता है, बावजूद उनकी समस्याओं के निराकरण के लिए ना ही कोई प्रयास किए जाते हैं और ना ही कोई ठोस कदम उठाए जाते हैं.

यही नहीं बल्कि बेदरे में पुलिस के अलावा पटवारी, सचिव, स्वास्थ्य कार्यकर्ता या वन विभाग ना तो अधिकारी आते हैं ना ही कर्मचारी जिसके चलते ग्रामीणों की समस्या जस की तस बनी हुई है। साथ ही मूलभूत सुविधाओं के लिए भी लोगों थाने पर निर्भर है। चूंकि ग्रामीणों की तरफ से प्राप्त आवेदनों को अपने स्तर पर फॉवर्ड करा समस्याओं के निराकरण के प्रयास किए जा रहे हैं, इसके अलावा जहां तक संभव हो पुलिस अपने स्तर पर भी ग्रामीणों की मदद कर रही हैं।

इसमें नक्षे, खसरे से लेकर स्वास्थ्य, शिक्षा संबंधी समस्याओं के निराकरण के लिए प्रषासनिक अमले को समय-समय पर परेशानियों से अवगत कराया जाता है। इस तरह अबूझमाड़ की सरहद से लगा बेदरे थाना एक आदर्श पुलिस स्टेशन साबित होने के साथ-साथ बढ़ते जनविश्वास ने नक्सल मोर्चे पर पुलिस के प्रति नजरिए को काफी हद तक बदला है।

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