जुडूम पर प्रतिबंध के आठ साल बाद बाहर आया विजयनगर वासियों का दर्द…
नक्सलियों के सताए परिवारों के बीच नई आस बनकर पहुँचे एसपी
- पी रंजन दास. बीजापुर.
पदभार ग्रहण के बाद जिले के नवपदस्थ एसपी दिव्यांग पटेल सोमवार को जिला मुख्यालय में बसाए गए सलवा जुडूम राहत शिविर विजय नगर पहुंचे। विस्थापन का दंश झेल रहे नक्सल पीड़ित परिवारों के बीच पहुंचकर एसपी ने ना सिर्फ उनका हालचाल जाना बल्कि समस्याओं से भी मुखातिब हुए।
श्री पटेल ने बस्ती के लोगों से रोजगार, बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल जैसी बुनियादी आवष्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उनकी मांगें सुनी। पत्रकारों से चर्चा में एसपी का कहना था कि शिविर में रहने वाले अधिकतर परिवारों के समक्ष रोजी-रोटी की समस्या हैं।
पीड़ित परिवारों से चर्चा में रोजगार की मांग प्रमुखता से रखी गई थी, लिहाजा जिले में बसाए गए सभी राहत शिविरों में रहने वाले परिवारों को रोजगार के मामले में राहत देने पुलिस की ओर से विशेष ध्यान दिया जाएगा।
सभी थाना प्रभारियों को निर्देषित किया गया है कि ऐसे परिवारों की तरफ से अगर रोजगार की मांग की जाती है तो कार्य दक्षता के आधार पर उन्हेंं रोजगार मुहैया कराए जाए। जो मजदूरी कर सकते हैं उन्हें स्थानीय निर्माण कार्यों में काम दिलाने का प्रयास होगा, इसके अलावा षिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार मूलक प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाए जाएंगे।
जिसमें समय-समय पर आयोजित होने वाले पुलिस भर्तियों के अलावा अन्य नौकरियों में चयन सुनिश्चित करने उन्हें प्रशिक्षित किया जाएगा। साथ ही अंदरूनी इलाकों में बसाए गए शिविरों तथा बसे गांवों के लोगों को राहत प्रदान करने जल्द ही प्रत्येक थानों में पब्लिक हेल्प डेस्क की तर्ज पर काउंटर खोले जाएंगे।
चूंकि अंदरूनी इलाकों में पहुंचमार्ग, नक्सली भय के चलते अक्सर ग्रामीणों की शिकायतें, मांगें सीधे प्रशासन तक नहीं पहुंच पाती है, इससे निजात दिलाने जन सहयोग की भावना के तहत् काउंटर खोले जाएंगे। सोमवार को एसपी श्री पटेल अकास्मात विजय नगर पहुंचे हुए थे।
ऐसे में अरसे बाद किसी अफसर द्वारा षिविरार्थी परिवारों की सुध लिए जाने से बस्ती में रहने वाले लोग भी काफी खुष थे। उत्साहित लोगों ने एसपी के सामने खुलकर अपनी बातें रखी और मांगों से अवगत भी कराया।
गौरतलब है कि 2005 में नक्सली प्रताड़ना से तंग आकर बेदरे के समीपस्थ अम्बेली गांव से सलवा जुडूम की शुरूआत लोगों ने की थी। हालांकि छह साल तक यह आंदोलन बीजापुर से निकलकर दंतेवाड़ा, सुकमा में फैल गया था। इसी दौरान नक्सली हिंसा के भय से बीजापुर जिले में सैकड़ों गांव वीरान हुए थे। नक्सलियों के भय से सैकड़ों आदिवासी परिवार राहत षिविरों में आकर बस गए थे।
चूंकि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की याचिका पर सुनवाइ्र करते सुको ने जुडूम पर प्रतिबंध लगा दिया। जिसके बाद सरकार ने भी आंदोलन से अपने हाथ खींच लिए थे, लेकिन आंदोलन के वक्त शिविर में आकर बसे सैकड़ों परिवारों के सामने गांव वापसी का रास्ता बंद हो जाने के बाद वे शिविर में ही स्थाई बस गए थे,
लेकिन सरकारी मदद की जो आस लोगों को थी, बावजूद सरकारी सुविधाओं के नाम पर पीड़ित परिवारों को ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ। जुडूम पर प्रतिबंध लगे लगभग नौ साल बीतने को है, लेकिन बीते वर्षों में मंत्री और ना कोई जनप्रतिनिधि शिविरों में झांकने पहुंचा, ऐसे में अपने पुस्तैनी घर-जमीनी, खेत-खलिहानों से दूर पीड़ित परिवारों के बीच एसपी की आमद विजयनगर वासियों के लिए ना सिर्फ सुखद आशचर्य था बल्कि विकास की आस ताक रहे लोगों के लिए एक उम्मीद की किरण भी है।
ऐसे पड़ा नाम “विजय नगर”
-सलवा जुडूम शुरू होने के ठीक दो महीने बाद बीजापुर में निवासरत् उसूर के जिपं सदस्य विजय गिरी की अपहरण के बाद 8 जुलाई 2005 को निर्मम हत्या कर दी थी। नक्सलियों ने पर्चा फेंककर हत्या का कारण लिखते हुए बताया था कि विजय गिरी महेंद्र कर्मा के बेहद करीबी थे इसलिए उनकी हत्या की गई थी। ठीक इससे कुछ दिनों बाद आस-पास के इलाकों से लोगों को लाकर थाने के ठीक सामने राहत शिविर में बसाया गया था और राहत शिविर का नाम नक्सली हमले में मारे गए विजयगिरी के नाम पर विजय नगर रखा गया था। जहां इस समय तकरीबन 65 ऐसे परिवार है जिन्हें सलवा जुडूम के दौरान सरकार ने जिला मुख्यालय में लाकर बसाया था।